
यहाँ राम नहीं, यहाँ कृष्ण नहीं
रावणों का दरबार लगा है,
कुम्भकर्ण सब सोये हैं
विभीषण की आवाज नहीं।
मंदोदरी सब रोती हैं
सीता धरती में समायी हैं,
लक्ष्मण सारे मूर्छित हैं,
भरत सिंहासन से दूर खड़े हैं।
प्रजा सब मूक बनी है
रावणों का दरबार लगा है,
राजनीति की उछल -कूद में
बंदर सेना उत्पाती है,
राष्ट्र जब-जब रोता है
रावण जोरों से हँसता है।
शिव कहते हैं विषपान करूँ
देव अमृत की चाह लिए हैं,
पंछी तीर से गिरते हैं
बुद्ध उन्हें बचा लिए हैं।
कहाँ-कहाँ का दुख लिए
बुद्ध ज्ञान को भटक रहे हैं,
अर्जुन गांडीव लिये हुए हैं
मृत्यु से कोमल भाव जगे हैं,
राष्ट्र जब-जब रोता है
रावण जोरों से हँसता है।
#महेश रौतेला