
शिक्षक दिवस के अवसर पर इस दुनिया में मुझे जितने भी लोगों से छोटी से छोटी कोई भी बात सीखने का अवसर मिला, उन सभी गुरुओं को मेरी तरफ से समर्पित है मेरी एक छोटी सी कविता –
मैं गुरुओं की महिमा गाँऊँ,
उनके उपकार को बतलाऊँ ।
किन शब्दों में किन लफ़्ज़ों में,
मैं उनका अभिनंदन गाँऊँ ।
उनने ही चलना सिखलाया,
बोलूँ क्या उनने बतलाया ।
कैसे व्यवहार करूँ जग में,
यह उनने ही तो समझाया ।
मैं चाहूँ तो, ना चाहूँ तो,
बतला कर भी बतलाऊँ तो ।
मैं क्या-क्या बदला पाऊँगा,
सूरज को दीप दिखाऊँगा ।
जिसने मुझ अदने बालक को,
इस जग में दी पहचान नयी ।
ऐसे अपने उन गुरुओं को,
अर्पण है यह पहचान नयी ।
साकेत जैन शास्त्री ‘सहज’
जयपुर(राजस्थान)