
हमारी बात कर लिया करो,
मिलने के संदर्भ हों या बिछुड़ने के,
पूजा-पाठ का सिलसिला हो या टहलने का,
ज्ञात कहानी हो या अज्ञात ,
चलने की बात हो या रूकने की,
शब्दों से कहना हो या मौन से,
बचपन के किस्से हों या जवानी के
लड़ाइयों का होन हो या विलुप्त होना,
दुनिया के इस भाग में हों या उस भाग में,
कभी हमारी बात कर लिया करो।
सोचने की मुद्रा में हों या शून्यता की,
संस्कृति बना रहे हों या मिटा रहे हों,
दयावान बन रहे हों या क्रूर,
भव्य लग रहे हों या दिव्य,
हमारा परिणाम जान लिया करो।
कहीं गा रहे हों या सो रहे हों
जंगल में हों या गाँव-शहर में,
मुस्कान में प्रस्फुटित हो रहे हों या हँसी में फूट रहे हों,
महक रहे हों या भिनभिना रहे हों,
घर पर हों या धूप में तप रहे हों,
कभी हमारी पूछताछ कर लिया करो।
#महेश रौतेला