#अविनाश तिवारीजांजगीर चाम्पा(बिहार)
Read Time1 Minute, 10 Second
शून्यता से पूर्णता
अनन्त तुम्हारा विस्तार है।
सृष्टि के कण कण में विराजित
तेरा ही साम्राज्य है।
आख्यान तुम व्याख्यान हो
अपरिमेय संपूरित ज्ञान हो
हे अनादि अनदीश्वर तुम्ही
सांख्य विषय कला और विज्ञान हो।
सूत्र हो सूत्र धार हो
नियति तुम करतार हो
हो परिभाषित संचिता
अपरिभाषित तुम भरतार हो।
जग नियंत्रक परिपालक
संहारक प्राणवान हो
उदित जीव जीवात्मा
के बस तुम्ही आधार हो।
हूँ अबोध शिशु तेरा
मर्म न तेरा जान सका
आदि तुम अंत तुम
परम् सत्य न पहचान सका।
तुम नसों में बहते रुधिर
स्वांस और उच्छ्वास हो
रोम रोम में बसते प्रभु तुम
प्रतिपल मेरे पास हो
कण कण में निवास हो।
Average Rating
5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%
पसंदीदा साहित्य
-
April 23, 2019
क्या जला दिया
-
January 25, 2020
जीवन
-
August 20, 2018
एक नई भोर
-
February 7, 2018
एक नजर क्या मिला