
बरसते भादों का महीना है
प्रिये तुमको भीगके जाना है
बोलती कोयल कुहू-कुहू
हमने तुम्हें ही अपना माना है
शीतल समीर चलती, मोर नाचते
कल-कल कहती नदी बहती
हमारे हृदय का कहना है
बरसते भादों का महीना है
ताल-तलैया, पोखर लेतीं हिलोरे
मन तुम्हारा, मन हमारा डोले
तुमको लज्जा के साये में चमकना है
बरसते भादों का महीना है
खेतों की हरियाली सा यौवन तुम्हारा
बड़ा हसीं, बड़ा प्यारा चेहरा तुम्हारा
खाते हैं कसम साथ जीना-मरना है
बरसते भादों का महीना है
#मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
परिचय : मुकेश कुमार ऋषि वर्मा का जन्म-५ अगस्त १९९३ को हुआ हैl आपकी शिक्षा-एम.ए. हैl आपका निवास उत्तर प्रदेश के गाँव रिहावली (डाक तारौली गुर्जर-फतेहाबाद)में हैl प्रकाशन में `आजादी को खोना ना` और `संघर्ष पथ`(काव्य संग्रह) हैंl लेखन,अभिनय, पत्रकारिता तथा चित्रकारी में आपकी बहुत रूचि हैl आप सदस्य और पदाधिकारी के रूप में मीडिया सहित कई महासंघ और दल तथा साहित्य की स्थानीय अकादमी से भी जुड़े हुए हैं तो मुंबई में फिल्मस एण्ड टेलीविजन संस्थान में साझेदार भी हैंl ऐसे ही ऋषि वैदिक साहित्य पुस्तकालय का संचालन भी करते हैंl आपकी आजीविका का साधन कृषि और अन्य हैl