पिता और बेटा

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मजदूरी करके भी हमको उसने पढ़ाया है ।
कचौड़ी के बदले उसने सूखी रोटी खाया है ।
हम पढ़-लिखकर इन्सान बनेंगे,
यह उम्मीद उसने खुद में जगाया है ।

जब पिया सिगरेट बेटा,देख वह शरमाया है ।
उसने नशा का मूँह ना देखा,बेटे ने शिखर आज चबाया है ।
उसकी उम्मीदों का आज गला घोंट,
पता नही बेटे ने आज क्या पाया है ।

सौरभ कुमार ठाकुर 
बाल कवि और लेखक
मुजफ्फरपुर(बिहार)

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