उड़ानें ख़्वाब में हम भी बहुत ऊँची लगाते हैं
मगर खुलती हैं जब आँखें तो वापस लौट आते हैं।
यहाँ तो फूल गोभी ही अभी तक ला न पाया मैं
न जाने लोग कैसे चाँद तारे तोड़ लाते हैं।
टिकी हैं बाज की नजरें हमारी साग भाजी पर
जहाँ सब रेत में जौ डालकर मोती उगाते हैं।
तुम्हारी प्यार की कसमें किसी बच्चे की टॉफी हैं
वो खाते हैं नहीं जितना कि कपड़े में लगाते हैं।
हुईं जब शादियां उनकी कमीने हो गये दोनों
बहुत था प्यार उनमें भी पुराने खत बताते हैं।
मेरी औकात तय करती है मेरे जेब की गर्मी
अगर सूखी नदी हो तो परिंदे लौट जाते हैं।
यहाँ हर पेड़ से कह दो वो कोयल पालना सीखें
अगर है डाल खाली फिर तो उल्लू बैठ जाते हैं।
दिवाकर पांडेय
जलालपुर(उत्तरप्रदेश)