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जब भी आओगे मुझे मौजूद वहीं पाओगे,
वक्त की निशानियों का एक पहरा हूँ मैं।
मैं कोई दरिया नहीं जो कहीं भी बह जाऊँगा,
तुम भी वाकिफ हो कि झील-सा ठहरा हूँ मैं।
मौसम कोई भी आए अब न होगा गुलबहार,
बारिशें भी जानती हैं बंजर सहरा हूँ मैं।
बस किनारों से लुफ्त लेना,नहीं आना करीब,
फिर नहीं इल्जाम देना कि बहुत गहरा हूँ मैं।
#अमित शुक्ला
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