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जो मेरा था किसी का हो गया है,
मेरा यह वहम सच्चा हो गया है।
उछल कर आसमां छूने की ज़िद में,
वो अपने क़द से ऊंचा हो गया है।
बहारें लेके यूं आया है सावन मिरे,
आंगन में रस्ता हो गया है।
अज़ानों की सदाएं कह रहीं हैं,
अब उठ जाओ सबेरा हो गया है।
वफ़ा की उससे क्या उम्मीद रखें,
‘अनिता’ अब वो नेता हो गया है।
#अनिता आनंद मुकाती
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