बेटिया

0 0
Read Time3 Minute, 27 Second

ritu ray

क्यूँ इस जहा में हम बेटियों के लिए प्यार नहीं
क्यूँ हमसे कोई उम्म्मीद नहीं,हमारा इंतज़ार नहीं।

हे धरा ,वसुंधरा हे माँ अवनि ,विकेशी
तुझसे हर बेटी अब पूछती है यही।
मेरे प्रश्नों का माँ देना उत्तर सही
पूछती है ये बेटी आँखे आंसुओ से भरी।
क्यूँ धरा पर हमें कुछ लोग लाते नहीं
क्या हममे माँ तुझ जैसे हिम्मत नहीं।
हे निसर्ग,भौतिक हे स्थूल माँ प्रकृति
पूछती है हर बेटी माँ दे उत्तर सही।
क्या तुझ जैसी मैं खूबसूरत नहीं
या धरा पर हमारी जरुरत नहीं।
तू तो है प्रकृति सब कुछ हरा -भरा करती है
मै भी तो घर परिवार पोषण – भरण करती हूं।
तू है सृष्टि,स्थूल माँ प्राणशक्ति
हे माँ प्रवृति हे माँ प्रकृति।
मै भी अंश तो एक माँ का ही हूँ
क्यों धरा पर बेटियों के लिए है नफरत बड़ी।
जन्म लेमे से पहले दफना देते है
अंश हु माँ का मैं भी क्यूँ सजा देते है।
क्या हुई भूल हमसे माँ बता तो सही
पूछती बेटी आँखें आंसुओ से भरी।
हे रवि ,पतंग हे दिनकर, मिहिर
हे अंशु, माली हे सविता, तरणि।
पूछती है ये बेटी बताओ सही
क्या तुम जैसी मैं तेजस्वी नहीं।
ओज मुझमे नहीं ,तेज मुझमे नहीं
क्या प्रकाशित जहाँ को हम करते नहीं।
बता दो हे भानु, दिवाकर तुम्ही
पूछती है ये बेटी आँखें आंसुओ से भरी।
चूल्हे की आँच,घर की नींव
हमें कहते सभी ।
सम्बंधो की अदेली ,प्रार्थनाओं की नदी
फिर ये है गिला ,क्यों जग में लाते नहीं।
हम बेटिया ही घर को सजाते तो है।
हर दिवाली पर हम जगमगाते तो है।
आप के कुल की मर्यादा बढ़ाते तो है।
पूछती है बेटी देना उत्तर सही।
दहेज़ के बोझ से कुछ है डरते पिता
माँ की ममता तड़फ करके कहती यही
मेरा अंश है धरा पर आने दो ना सभी।
हे विधु, सुधांश , हे हिमकर ,शशि
पूछती बेटी है देना उत्तर सही।
क्या तुझ जैसी मुझमे शीतलता नहीं
हे चंद्र ,इंदु, सोम, मयंक,
हे निशानाथ, राकेश,शशांक
पूछती है बेटी आँखें आंसुओ से भरी।
क्या तुझ जैसे हम चमकते नहीं।
हर घर को क्या हम रोशन करते नहीं
क्यूँ घर-घर में है इतनी नफरत भरी
पूछती है ये बेटी आँखें आंसुओ से भरी।
हे अष्टभुजी ,ज्वाला बता माँ आदिशक्ति
क्या मैं दुर्गा ,चंडी,काली नहीं।
या सती की तरह शक्तिशाली नहीं।
क्या सत्यवान के प्राण हम बचाते नहीं।
या नारी धर्म अपना निभाते नहीं।
धरा पर पड़ी जब जरुरत हमारी
क्या हमने लुटाये है बेटे नहीं।
या आन पर जौहर व्रत हमने किये थे नहीं
पूछती है ये बेटी बता माँ सही
क्यों धरा पर हो रही है हमारी कमी।
हे धरा वसुंधरा हे अवनि विकेशी
पूछती है बेटी आँखें आंसुओ से भरी।

#ऋतू राय ऊषा

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

ट्विंकल हम शर्मिंदा हैं

Sat Jun 8 , 2019
हां कली ही थी तुम    जो कभी न खिल पायी आंखों में शर्म हया     तुझे उसमें बेटी नज़र नही आई।। कब तलक हम चुप बैठे   घनघोर निंदा करेंगे तुष्टिकरण से जिंदा अपने  सियासत खेल को रचेंगे कौन दिशा में समाज        हमको ले जा […]

पसंदीदा साहित्य

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।