राजनीति में भाषा का शीलहरण

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shobha jain
आजकल  आक्रामक भाषा चलन में है, इसे चलन कहा जाय या सभ्यता का ह्रास आखिर क्या कहा जाय इसे ?समय और युगीन सन्दर्भों  के बदलाव के साथ लोकतंत्र में भी भाषा के जायके बदल रहें है इसके हाल ही में कई उदाहरण देखने में आये हैं जिसमें भाषा की मर्यादा कुछ इस तरह लांघी गई जो बेहद शर्मसार करने वाली थी जिसमें एक महिला राजनेता के विषय में जिन  शब्दों का प्रयोग किया गया था वह शर्मनाक है| जिस पर गंभीरता से काम करना उतना ही जरुरी है जितना वोट डालना |पहला मुद्दा भाषाकी मर्यादा का है दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा महिला के विषय में  शब्दों की अभद्रता का,यह  इस बात पर प्रश्न चिन्ह लगाती है की क्या ऐसे नेता देश का  प्रतिनिधित्व करने के योग्य है ? एक दूसरे के विपक्षी होने का अर्थ यह नहीं की भाषा की मर्यादाओं के परे चले जाय यह बात दोनों ही पक्षों पर समान रूप से लागू होती है  लोकतंत्र में जिस प्रकार शपथ की भाषा बेहद अनुशासित है वैसी ही भाषा की मर्यादा इससे जुड़े अन्य विषयों पर क्यों नहीं होती यह विचारणीय है, फिर वह विषय चाहे चुनाव अभियान का ही क्यों न हो,नेताओं के नीति निर्धारण से लेकर उनकी घोषणाओं तक सबमें भाषा आहत ही होती पाई जाती है |आखिर क्यों हमें भाषाई हिंसा नहीं खटकती जबकि भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ आत्म-अनुशासन की व्यवस्था है किन्तु दोनों में से केवल प्रथम वाले अधिकार का भरपूर और  मनमाना प्रयोग किया जाता है |अगर नीति निर्धारकों के नजरिये से यह विमर्श का विषय नजरअंदाज किया जा रहा है तो साहित्य और कलाएँ जो भाषा की उच्चतम अभिव्यक्ति का पर्याय मानी जाती है उन्हें इस और कुछ कदम उठाने चाहिए |क्यों न संविधान में राजनीतिज्ञों की भाषा भी निर्धारित कर दी जाय जिससे कम से कम नेताओं द्वारा शब्दों के अतिक्रमण से आमआदमी की भावनाओं को आहत होने से बचाया जा सकेगा ,युवा पीढ़ी भाषा के इस तरह के बर्ताव से आक्रोशित भाव पैदा होने से रोक सकेगी  |लोकतंत्र को भाषा के अपराधीकरण से रोकना, भाषा के बर्ताव पर आवश्यक कदम उठाना भी उतना ही जरुरी मुद्दा है जितना वोट डालना क्योकि मनुष्य भाषा में जीता है जो की हमारी सभ्यता का परिचायक हैं यह लोकतान्त्रिक मूल्यों का हिस्सा है | मिडिया जिसकी समाज में सबसे अहम भूमिका है इस विषय पर  गंभीरता दिखाने की आवश्यकता है |सभ्य, मर्यादित और अनुशासित भाषा केवल नीति निर्धारक पृष्ठों पर अंकित करने के लिए नहीं होती  संवाद करते समय अथवा मंच पर उद्बोधन  देते समय भी उनका  प्रयोग होना उस नीति का एक हिस्सा है | लोकतंत्र में भाषा की मर्यादा भी उतना ही महत्वपूर्ण विषय है जितना चुनाव में वोट डालना |साहित्य में जो भाषा मानव को संस्कारित करती है  राजनीति में वही अपनी शुचिता क्यों खो देती है क्या यह कुशल राजनीतिज्ञों के दायित्व का हिस्सा नहीं है  इस विचारणीय विषय को इस बार चुनावी परिणामों के साथ ही अमल में लाया जाय तो लोकतंत्र में बहुत कुछ खोने से बचाया जा सकेगा |
#प्रो. शोभा जैन
 
परिचय:– प्रो.शोभा जैन(लेखिका/समीक्षक)इंदौर 
     शिक्षा, साहित्य एवं हिन्दी भाषा से जुड़े विषयों पर स्वतंत्र लेखन |हिन्दी साहित्य की गद्य विधा –समीक्षा,आलेख निबंध,आलोचना एवं शोध पत्र लेखन में विशेष रूप से सक्रिय विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र –पत्रिकाओं में सम-सामयिक विषयों पर निरंतर प्रकाशन|  साहित्य एवं शिक्षा सम्बन्धी राष्ट्रीय शोध संगोष्ठीयों एवं कार्यशालाओं में सक्रीय सहभागिता| आईडियल असेट ग्रुप की मेनेजिंग डायरेक्टर के रूप में इन्वेस्टमेंट एवं फाईनेंशियल प्रबंधन(निवेश एवं अर्थ प्रबंधन) एवं प्रशिक्षक के रूप में कार्यानुभव| |शिक्षा विभाग में नई पीढ़ी के लिए उनके कौशल विकास एवं समस्याओं के समाधान हेतु काउंसलर के रूप में पूर्व कार्यानुभव |शैक्षणिक योग्यता –बी.काँम, एम.ए. हिन्दी साहित्य, अंग्रेजी साहित्य में पूर्वार्द्ध, पीएच-डी.हिन्दी साहित्य| निजी महाविद्यालय में हिन्दी की प्राध्यापक/अतिथि प्राध्यापक | उद्देश्य: शिक्षा साहित्य एवं हिन्दी भाषा के विकास में प्रयासरत निवास इंदौर (मध्यप्रदेश)

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।