हिंदी के प्रचार और विस्तार में सोशल मीडिया की भूमिका

1 0
Read Time15 Minute, 52 Second
kumari pinki
हिंदी के देदीप्यमान नक्षत्र दिनकर, गुप्त, निराला,पंत।है जन -जन की भाषा
गाएं इसकी मंगलगाथा।
राष्ट्र की शान, एकता की पहचान,
जन -जन की भाषा है हिन्दी।
हिंदी देश को एकता के सूत्र में बांधने वाली भाषाओं में है। हिंदी जिसे निराला ने पहचाना, सुभद्रा ने सहेजा ,गुप्त ने अपनाया, और दिनकर ने सभी का दीवाना बनाया ,विश्व में फैलाया।
भाषा प्रतीकों का समुच्चय होती है। संस्कृतियों और संप्रेषण का सबसे सरल, सुंदर, सुस्पष्ट भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम होती है। भाषा वह साधन है जिसके माध्यम से प्रत्येक प्राणी अपने विचारों को दूसरों पर अभिव्यक्ति के माध्यम से जोड़ने का प्रयास करता है।हमारे संतों, समाज सुधारकों और राष्ट्रनायकों ने अपने विचारों को व्यक्त  करने   के लिए हिंदी भाषा को अपनाया और विचार प्रचार का माध्यम बनाया।आज हिंदी ऐसी भाषा की कड़ी है जो संपूर्ण देश को एकता के सूत्र में बांधने का काम करती है। विश्व में भी तीसरे भाषा के रूप में स्थान प्राप्त है।              देश में 78%लोग  हिंदी का प्रयोग करते हैं। देश को एक छोर से दूसरे छोर तक जोड़ कर रखती है। जनसंख्या की दृष्टि से हिंदी विश्र्व में बोली जाने वाली तीसरी भाषाओं में से एक है।
मीडिया-
हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में पुष्पित-पल्लवित     करने में  मीडिया की भूमिका उल्लेखनीय और अहम है। मीडिया ऐसा उघम है,जो समाज के विभिन्न वर्गों, ध्रुवों ,शक्ति – केन्द्रों के बीच संप्रेषण का दायित्व वहन  निर्भीक -निष्पक्ष और वास्तविक संवादसेतु के रुप में सभी वर्गों :-उपेक्षित, उत्पीड़ित,अभिजात्य एवं अभिवंचित वर्ग के लोगों के हितों की रक्षा करने के लिए संवाद वाहक बन तत्पर और तैयार रहती है।
     हिंदी सरल और उदार भाषा है।खड़ी बोली भी हिंदी ही है। हिंदी फारसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ हिंद से संबंधित होता है। हिंदी भाषा का विकास सन् 1283ई.मे खुसरो की पहेलियों से हुआ।
सन् 15 – 36से1623ई.में तुलसी दास जी के रामचरितमानस में अवधि के रूप में हिन्दी का प्रयोग किया गया।1826में उदंत मार्तंड पहला हिन्दी समाचार पत्र प्रकाशित किया गया।
भारत वर्ष में 14 सितम्बर1949को हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया गया। संविधान के अनुच्छेद 343 (1)में हिंदी को राज्य भाषा का दर्जा दिया गया। हिंदी भाषा को लिखने की लिपि देवनागरी लिपि तय किया गया।
वैश्विक पत्रकारिता का इतिहास लगभग 59ईसवी पूर्व रोम से शुरू होता है। प्रिंट मीडिया को आदि मीडिया कहा जाता है।
सोशल मीडिया के अंग- इंटरनेट फ़ोरम,वेबलाग, सामाजिक वेब,माइक्रोसॉफ्ट माइक्रोब्लागिंग,विकीज, सोशल नेटवर्किंग,पाॅडकास्ट,फोटोग्राफी  चित्र, चलचित्र आदि सोशल मीडिया के अंग होते हैं।
हिंदी के प्रचार और विस्तार में सोशल मीडिया का योगदान महत्वपूर्ण है।
भाषाओं में प्रिंट मीडिया का उदय आजादी से पूर्व ही शुरू हुई थी। भारत में सन् 1674में छपाई मशीन आ चुकी थी। लेकिन अखबार प्रकाशन में लगभग 102वर्षो का समय लग गया। सन्1776में अंग्रेजी शासन के दौरान समाचार पत्र प्रकाशित किया गया। बंगाल गजेटियर।
यह *संकल्प निश्चित रूप से भारतीये चेतना का शंखनाद था। सबसे पहले हिंदी साप्ताहिक पत्रिका उदंत मार्तंड का प्रकाशन सन् 1826में में हुआ था। स्वामी दयानंदजी सरस्वती ने संस्कृत भाषा को छोड़कर हिंदी भाषा को अपनाया।पहला दैनिक गौरव कोलकाता से प्रकाशित श्यामसुंदर सेन के द्वारा समाचार* *सुधावर्षण सन् 1854मेंहुआ। आज हिंदी के प्रचार और विस्तार में प्रिंट मीडिया की धूम मची है।
मीडिया की भूमिका- समाज में मीडिया की भूमिका  मुख्य रूप से संवाहक की होती है। खुशहाल गणतंत्र में मीडिया की अहम भूमिका  एवं उपादेयता आकलन के आधार पर मीडिया को चौथे स्तंभ का सम्मान प्राप्त है। समाज के विभिन्न वर्गों,सत्ता-केन्द्रो, व्यक्तियों और संगठनों, संस्थाओं के बीच संवाहक पुल का कार्य करता है। मीडिया और मीडियाकर्मियों की अपनी अंतर्निहित  शक्तियों,स्वयंस्फूर्त प्रतिबद्धताओं, ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, मूल्यनिष्ठा, नैतिकता, चरित्र और व्यापक  लोकहित कर्त्तव्य भावना का गुण संवादवहन के रूप में कार्य करता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था के जनसैलाब में मीडियाकर्मियों की भूमिका उल्लेखनीय है।
हिंदी का व्यापक प्रचार शुरूआत से ही हो रहा है।पुराने जमाने में भोजपत्रों पर लिखा जाता था। और उसके के बाद कपड़े पर लिखा जाने लगा।सभी में कहीं ना कहीं हिंदी का व्यापक प्रचार विस्तार     शामिल हैजो एकता का सूचक है।लिखा पत्थरों पर भी जा सकता है। महत्त्वपूर्ण तथ्य योगदान स्वरूप यह है कि क्या लिखा गया है।
आज सोशल मीडियाकर्मियों के माध्यम से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी को नया आयाम दिया जा रहा है। सामान्य ज्ञान, फ़िल्म, फ़ैशन, स्वास्थ, साहित्य, पर्यटन, विज्ञान कथा-कहानियां जैसे विषयों पर बहुत अच्छी* पत्रिकाएं हिंदी में निकलती हैं और खूब पढ़ी जाती हैं। बच्चों और महिलाओं की हिंदी पत्रिकाएं विशेष रूप से लोकप्रिय हैं। ज़ाहिर है कि ये सभी पत्र-पत्रिकाएं आम जनता के बीच हिंदी भाषा को गांव-गांव तक लोकप्रिय बना रही हैं। और शहर और ग्रामीण परिवेश की दूरी कम कर रही है। एकता के सूत्र में पिरोने का काम कर रही है।
फिल्म- फीचर फिल्मों, वृत्तचित्रों तथा फीचर फिल्मी गीतों के प्रसारण माध्यम से देशों विदेशों में हिंदी को आमजन तक पहुंचाएं जाने का कार्ययोजना के रूप में रूपांतरण हुआ है। पहली मूक फिल्म राजा हरिश्चंद्र बनी।श्वेत श्याम चलचित्र के बाद रंगीन फिल्मे बनने लगी। दर्शकों का समूह बनता गया। अमीर, गरीब, साक्षर और निरक्षर सभी फिल्मों में अपनी मनोरंजन खोजने लगे। जो हिंदी के प्रचार के माध्यम अंतर्गत है।
दूरदर्शन-टेलीविजन पर प्रसारित धारावाहिक दर्शको के बीच विषेश स्थान बना लिया है। सामाजिक, पौराणिक, ऐतिहासिक, पारिवारिक और धार्मिक विषयों के आधार पर बनाया गया धारावाहिक घर घर पहुंच बना कर हिंदी को राष्ट्रभाषा से आम जनता की भाषाओं में बदल दिया  है। विभिन्न प्रकार के धारावाहिक जैसे नब्बे के दशक की भारत की खोज    और आज की प्रचलित कार्यक्रम कौन बनेगा करोड़पति हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूपों रूपांतरण का नया आयाम है।   देश को एकता के सूत्र में बांधने का संकल्प है।विश्व में अपना सर्वश्रेष्ठ किर्तिमान स्थापित करने  का प्रयास है।
आकाशवाणी-राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी को सर्वस्वीकार्य बनाने में रेडियो की उल्लेखनीय भूमिका रही है। आकाशवाणी ने समाचार, विचार, शिक्षा, समाजिक सरोकारों, संगीत, मनोरंजन आदि सभी स्तरों पर अपने प्रसारण के माध्यम से हिंदी को देश के कोने-कोने तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण योगदान किया है। इसमें हिंदी फ़िल्में और फ़िल्मी गीतों का विशेष स्थान रहा है। हिंदी फ़िल्मी गीतों की लोकप्रियता भारत सहित चीन, यूरोप और कई देशों तक जा पहुंच गई है।
आकाशवाणी की विविध भारती सेवा तथा अन्य कार्यक्रमों के अंतर्गत प्रसारित फ़िल्मी गानों नें हिंदी को देशभर के लोगों की ज़बान पर ला दिया। हिंदी को देशव्यापी मान्यता दिलाने में फ़िल्मों की  अहम भूमिका रही है किंतु फ़िल्मों से अधिक लोकप्रिय उनके गीत रहे हैं जिन्हें जन-जन तक पहुंचाने का काम आकाशवाणी ने किया। अब वही काम निज़ी एफएम चैनल कर रहे हैं। एफएम चैनल अनेक प्रकार के हल्के-फुल्के कार्यक्रमों, वाद-संवाद और हास्य- प्रहसन के ज़रिये हिंदी का प्रसार कर रहे हैं। इस समय आकाशवाणी के 225 केंद्रों और 361 ट्रांसमीटरों के साथ-साथ लगभग 400 एफएम और सामुदायिक रेडियो चैनल प्रसारण कर रहे हैं। इनमें से अधिकतर चैनल हिंदी में कार्यक्रम प्रसारित करते हैं। रेडियो प्रसारण में हिंदी के महत्व को इसी प्रकरण के आधार पर हम समझ सकते हैं।
   सोशल नेटवर्किंग मीडिया ने अभिव्यक्ति के अवसर बढ़ाए हैं। फेसबुक के जरिए दिन- रात कभी भी अपने बातों को दूसरों को शेयर कर सकते हैं। संवाद पहुंचाने का माध्यम है सोशल मीडिया।                         साहित्य  के क्षेत्र में अक्सर पाठकों की कमी महसूस होती है। सोशल मीडिया के माध्यम से साहित्य को समृद्ध और सुदृढ़ बनाने का प्रयास है। सक्रिय साहित्यकार से लेकर युवा साहित्यकारो को मंच प्रदान करने में अहम भूमिका निभाने काम कर रहा है।                  हिंदी विश्र्व भर में विस्तृत रूप से फ़ैल रही है। इसका श्रेय सरकार से ज़्यादा सोशल मीडिया नेटवर्किग साइट्स का है। विभिन्न प्रकार के समाचार पत्र, पत्रिकाएं और राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाएं हिन्दी के विकास में सहायक हैं। मीडिया देशज शब्दों का प्रयोग कर उसे जन साधारण तक पहुंचने में सक्षम है। अगर मीडिया को पाठशाला कहा जाय तो वह हिंदी का मार्ग प्रशस्त करते हुए लोगों के ज़ुबान तक पहुंच कर ह्रदय में वास करता है। मीडिया ने तंत्र के रूप में दुनिया में हिंदी के भाषाई बाजार का विस्तृत व्यापकता प्रस्तुत किया है। साहित्य संप्रेरणा जो वर्ग,जाति,धर्म, समाज, समूह, संप्रेरणा, संप्रदाय,देश और संपूर्ण विश्व के लोककल्याण की भावनाओं से संवर्धित एवं संनन्निहित होता है। सोशल नेटवर्किंग मीडिया के जरिए ही रचनाएं प्रकाशित कर जन साधारण तक पहुंच बनाने का काम करता है।सभी के द्वारा हिंदी जन मानस को समझ आ जाती है। साहित्यकारों में, कल्पनाशीलता और विश्वदृष्टि होती है।                      सोशल मीडिया के कई प्रकार के दुष्प्रभाव भी सामने आया है। मीडिया एवं इंटरनेट के व्यापक उपयोग करने के कारण हिंदी भाषा का स्वरुप विकृत हो गया है जिसके कारण हिंदी भाषा विकृत हो रही है। व्याकरण संबंधी दोषों के साथ वाक्य रचना भी प्रभावित होती जा रही है। साहित्यिक चोरी भी चलन में है।
आज कल हिंदी का स्वरूप बदल कर हिंग्लिश,अंग्रेजी में मिला-जुला स्वरुपों में बढ़ोत्तरी हुई है।  हिंदी फिर भी अडिगता व अविचलता के साथ अभिवृद्धियों सहित अश्वमेध यज्ञ के घोड़े की तरह प्रगतिशील विचारधाराओं को संजोकर संपूर्णता के साथ संपूर्ण राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधने का काम करती है।                        मीडिया प्रगतिशीलता के दौड़ में हिंदी के प्रचार और विस्तार को गतिशील बनाने का माध्यम है।
मीडिया और हिंदी निश्चित ही एक सिक्के के दो पहलू हैं। हिंदी को अपने प्रसार और प्रचार के लिए मीडिया की आवश्यकता है उसी तरह मीडिया को अपने विस्तार के लिए हिंदी की आवश्यकता है।
वस्तुत:मीडिया के द्वारा  सभी सूचनाओं व*ल रचनाओं को सर्वसाधारण तक पहुंचाया जाता रहा है।  भारत जैसे विकासशील और विशाल देश में व्यापक रूप से हिन्दी बोली जाती है। जिसके प्रचार और विस्तार में सोशल मीडिया का योगदान भूलाया नहीं जा सकता है।
#कुमारी पिंकी
,दरभंगा बिहार 

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

नवोदय क्रांति परिवार :- शिक्षा जगत की अनूठी पहल

Tue May 28 , 2019
    राजकीय विद्यालयों के शैक्षिक स्तर को सुधारने के लिए प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक सरकार द्वारा अनेकों योजनाएं लागू की है। फिर भी सरकारी स्कूलों का स्तर नहीं सुधर रहा है। शिक्षकों को भारी वेतन मिलता है। लेकिन पढ़ाई का स्तर ठीक नहीं है।   प्राथमिक […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।