#नीरज त्यागीग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश )
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मैं अपने सपनों से खुद ही हार गया।
तेज चलने का हुनर.मुझे खुद ही मार गया।।
दौड़ता रहा सुबह से शाम तरक्की की दौड़ में,
गिरा जब मैं थककर पता चला की रात हो गई।
मुझको गिरकर उठने का भी हुनर याद था।
क्या करूँ शरीर की थकन मेरे हुनर को खा गई।।
मेरा मांझी , मेरी नैया सब साथ ही तो थे मेरे,
क्या करूँ मेरी नैया को तुफानो में लहर खा गई।
हर कोई किनारा ढूंढता फिर रहा है समंदर में,
क्या करूँ गर मेरी नैया किनारों पर डगमगा गई।
आजकल हुआ है अंत सपनो का कुछ इस कदर,
मेरे सपनों को भी मेरी थकन के आगे मौत आ गई।
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