अनाम भीड़ के खतरे

0 0
Read Time3 Minute, 3 Second
salil saroj
ये भीड़ कहाँ से आती है
ये भीड़ कहाँ को जाती है
जिसका कोई नाम नहीं है
जिसकी कोई शक्ल नहीं है
जिसको छूट मिली हुई है
समाज,कानून के नियमों से
जिसकी शिराओं में खून की जगह
द्वेष की अग्नि बहती है
जिसके मस्तिष्क में भवानों के वजाय
क्रोध भड़कती रहती है
जिनकी भुजाएँ तत्पर हैं
किसी की भी हत्या करने को
जिनकी जिह्वा व्याकुल है
जहर का माहौल फैलाने को
कभी धर्म,कभी जाति
कभी व्यवसाय,कभी राजनीति
की आड़ में
इनकी दावेदारी है
नए राष्ट्र के निर्माण की
ये कैसी तैयारी है
कभी सड़क,कभी घर
कभी खेत,कभी डगर
कभी उत्तर, कभी दक्षिण
कभी पूरब,कभी पक्षिम
हर तरह इस भीड़ के
आतंक का साया है
क्या बूढ़ा,क्या बच्चा,
क्या आदमी,क्या महिला
कोई नहीं इससे बच पाया है
आखिर
इनको कौन पालता है
कहाँ से मिलती है
इनको ताकत
कौन हैं इनके आका
क्यों मिल जाती है
इनको सजा से राहत
क्या हमने अपने घरों में देखा है
अपने बच्चों के दिलों में झाँका है
कहीं यहीं उन्माद उनके दिलों में नहीं तो पल रहा
क्योंकि
सोते-जागते,शाम-सवेरे टी वी पर यही तो चल रहा
हम इंसान होने के दर्जे से गुज़र चुके हैं
अपनी मानवता,अपनी इंसानियत से बिछड़ चुके हैं
ये भीड़ अब कहाँ जाकर और क्या कर के रूकेगी
यह तय कर पाना अब हमारे वश में नहीं हैं
ये जानवरों की प्रवृत्ति के अनुयायी है
इनको जो स्वाद लाशों  में मिलता है
वो भाईचारा,मोहब्बत और कौमी एकता के रस में नहीं है
#सलिल सरोज

परिचय

नई दिल्ली
शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011),  जीजस एन्ड मेरीकॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)।

प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका”कोशिश” का संपादन एवं प्रकाशन, “मित्र-मधुर”पत्रिका में कविताओं का चुनाव।सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

तन और मन

Sat Sep 15 , 2018
हर्षित मन रहा करो खुशी मिले अपार मन में रहे शांति सफलता मिले हजार मन मे जब हो शांति तन भी स्वस्थ ही रहे रोग न कोई होने पाये लम्बा जीवन  हो जाये तन और मन जब साथ दे सद्कर्म करे भरपूर परमार्थ ही लक्ष्य रहे दुख रहेगा फिर दूर […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।