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ये भीड़ कहाँ से आती है
ये भीड़ कहाँ को जाती है
जिसका कोई नाम नहीं है
जिसकी कोई शक्ल नहीं है
जिसको छूट मिली हुई है
समाज,कानून के नियमों से
जिसकी शिराओं में खून की जगह
द्वेष की अग्नि बहती है
जिसके मस्तिष्क में भवानों के वजाय
क्रोध भड़कती रहती है
जिनकी भुजाएँ तत्पर हैं
किसी की भी हत्या करने को
जिनकी जिह्वा व्याकुल है
जहर का माहौल फैलाने को
कभी धर्म,कभी जाति
कभी व्यवसाय,कभी राजनीति
की आड़ में
इनकी दावेदारी है
नए राष्ट्र के निर्माण की
ये कैसी तैयारी है
कभी सड़क,कभी घर
कभी खेत,कभी डगर
कभी उत्तर, कभी दक्षिण
कभी पूरब,कभी पक्षिम
हर तरह इस भीड़ के
आतंक का साया है
क्या बूढ़ा,क्या बच्चा,
क्या आदमी,क्या महिला
कोई नहीं इससे बच पाया है
आखिर
इनको कौन पालता है
कहाँ से मिलती है
इनको ताकत
कौन हैं इनके आका
क्यों मिल जाती है
इनको सजा से राहत
क्या हमने अपने घरों में देखा है
अपने बच्चों के दिलों में झाँका है
कहीं यहीं उन्माद उनके दिलों में नहीं तो पल रहा
क्योंकि
सोते-जागते,शाम-सवेरे टी वी पर यही तो चल रहा
हम इंसान होने के दर्जे से गुज़र चुके हैं
अपनी मानवता,अपनी इंसानियत से बिछड़ चुके हैं
ये भीड़ अब कहाँ जाकर और क्या कर के रूकेगी
यह तय कर पाना अब हमारे वश में नहीं हैं
ये जानवरों की प्रवृत्ति के अनुयायी है
इनको जो स्वाद लाशों में मिलता है
वो भाईचारा,मोहब्बत और कौमी एकता के रस में नहीं है
#सलिल सरोज
परिचय
नई दिल्ली
शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरीकॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)।
प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका”कोशिश” का संपादन एवं प्रकाशन, “मित्र-मधुर”पत्रिका में कविताओं का चुनाव।सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश।
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