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हमसे हमारे ख्वाब न छिन
काँटों भरी गुलाब न छिन ।
जिंदा तो हूँ गफलत में सही
यादों की ये सैलाब न छिन ।
बेहद सुकून से रहते हैं यहाँ
सुखे फूलों से किताब न छिन ।
कुछ तो रहम कर मेरे खुदा
मेरे हिस्से की अज़ाब न छिन ।
कहने दे मुझे नाकाम आशिक़
रकीबों से मेरा खिताब न छिन ।
हक़ है उन्हें भी बात रखने का
मजलूमों से इंकलाब न छिन ।
नये दौर मे तरककी है जाएज़
मगर बच्चों से आदाब न छिन ।
जिंदा रख अजय अपने को
खुद से दिले बेताब न छिन
#अजय प्रसादनालंदा(बिहार )
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