पहला मित्र – क्या हम सब एक हैं ?
दूसरा मित्र – नहीं, नहीं हम एक कैसे हो सकते हैं मैं हिन्दू, तुम मुसल्मान, ये सिक्ख, ये ईसाई ; हम सभी अलग-अलग धर्मों को मानने वाले हैं, इसलिए हम एक नहीं हो सकते हैं ।
तीसरा मित्र – अरे, अरे ! झगड़ते क्यों हो ; हम एक हैं भी और नहीं भी ।
पहला मित्र – वह कैसे ?
तीसरा मित्र – वह ऐसे कि हम सब मनुष्य हैं इसलिए एक हैं, यदि हम एक विचारधारा वाले हो जाएं तो भी हम एक कहलाएंगे फिर वह विचारधारा कैसी ही क्यों न हो ।
हां लेकिन एक बात जरूर है …… और वो ये कि यदि हम गलत विचारधारा से एक हैं तो हमारी यह एकता ज्यादा दिन टिकने वाली नहीं है क्योंकि खोटे परिणाम आपस में ही एक दूसरे को काटते हैं जैसे बहुत क्रोध आ रहा हो जिसे, ऐसा दुकानदार भी लोभ परिणाम के चलते उस क्रोध परिणाम को निगल जाता है । अतः यदि हम अच्छी विचारधारा के साथ अपनी एकता को स्थापित करेंगे तो वह लम्बे काल तक सुदृढ़ और मजबूती के साथ सदा ही बनी रहेगी ।
दूसरा मित्र – और हम अलग कैसे ?
तीसरा मित्र – अरे ! जब हमारी विचारधाराएँ आपस में नहीं मिलती तब हम एक न होकर के अलग-अलग हो जाते हैं यही कारण तो है कि इतने विवाद, झगड़े इत्यादि होते रहते हैं ।
इसलिए हम सभी को आज से अपितु अभी से ही अच्छी विचारधारा वाले लोगों के साथ एकता स्थापित करनी चाहिए तभी सभी लोगों का विकास होगा, समाज उन्नति करेगा और देश पुनः एक विश्व गुरु के रूप में सारे जहाँ में स्थापित होगा ।
साकेत जैन शास्त्री ‘सहज’
जयपुर(राजस्थान)