पहाड़ी वाला भूत….

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mangal pratap
सोनभद्र के घने जंगलों के बीच आदिवासी बाहुल्य एक ऐसा गांव जहां मोबाईल में नेटवर्क पहाड़ पर चढ़े बिना नहीं पकड़ता,
जहां शाम होते ही लोगों को पहाड़ पर जाने से मना कर दिया जाता था। गांव के लोगों का ऐसा मानना है की शाम के बाद रात में पहाड़ी से अजीब-अजीब सी आवाजें आती हैं, वहां एक भूत रहता है जो बेहद ख़तरनाक है और अब तक कई लोग उसके शिकार हो चुके हैं। उस गांव की ये परम्परा वर्षों से चली आ रही थी। उस गांव में यदि कोई बीमार भी होता तो लोग उस पहाड़ी वाले भूत का प्रकोप मानते थे।आए दिन कोई न कोई भागो-भागो पहाड़ी वाला भूत आया चिल्लाते हुए पहाड़ी से गांव की भागता हुआ आता था जिससे गांव वालों का उस भूत के प्रति डर वर्षों से गांव के प्रत्येक व्यक्ति के अंदर बना हुआ था। उसी गांव के प्राइमरी स्कूल में मेरी ड्यूटी बच्चों को पढ़ाने के लिए लगाई गई थी। मेरा स्कूल में पहला दिन था लेकिन बच्चों को पढ़ाने की बजाय मैं मोबाइल नेटवर्क को लेकर बहुत परेशान हो रहा था। वजह थी इश्क की बीमारी, क्योंकि मैं एक लड़की से बेहद प्यार करता था और उससे बात किए बगैर नहीं रह सकता था। दोपहर में स्कूल की छुट्टी करने के बाद लहलहाती गर्मी में जलते हुए ऊंचे पहाड़ पर चढ़ना बेहद जोखिम भरा था लेकिन ये इश्क की बीमारी जो न करा दे? वहां के लोगों द्वारा लाख मना करने के बाद भी मैं पहाड़ी पर अनेक जोखिमों को झेलते हुए चढ़ने में कामयाब रहा। मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी, मैं बेहद खुश हो रहा था क्योंकि अब मेरी बात मेरी प्रेमिका से होने वाली थी। नेटवर्क आने के बाद जब मैंने फोन लगाया तो उसने यह कह कर काट दिया कि मुझे अभी कुछ काम है, मैं बाद में आपसे बात करूंगी। उस लहलहाती धूप में सर पर बिना कुछ बांधे हुए मैं अंदर से टूटता चला जा रहा था। मेरे सब्र की बांध धीरे धीरे टूट रही थी, और टूटे भी क्यों न? शायद वो मेरे त्याग व परिश्रम को समझने में असमर्थ थीं।
लेकिन जो भी हो, मुझे तो इश्क का भूत सवार था और इश्क वाले भूत के चक्कर में मैं पहाड़ वाले भूत की कहानी भूल चुका था।
मैं बिना कुछ खाए पीए शाम तक पहाड़ पर रूकने वाला था।
धीरे-धीरे शाम हो चली थी, मैंने भी प्रण किया था कि बिना बात किए वापिस नहीं जाउंगा चाहे कुछ भी हो??? अंधेरा होने के बाद दोस्तों को एवं गांव वालों को मेरी चिंता होनी शुरू हो चुकी थी, लेकिन रात के अंधेरे में उस ऊंची पहाड़ी पर चढ़ना सभी के बस की बात नहीं थी। रात के करीब 10 बज रहे थे, मैं अकेले पहाड़ी पर बैठा हुआ था तभी अचानक मुझे अजीब-अजीब सी आवाजें आनी शुरू हो गई। गांव वालों की बातें धीरे-धीरे सच साबित हो रही थी। मैं अंदर से बहुत डरा हुआ था लेकिन बाहर से एक वीर पुरुष की भांति दिखावे का प्रयास कर रहा था।।। आवाजें कई तरह की आ रही थीं, जोरों से हवा चलने के वजह से मैं आवाजों को समझने में असमर्थ था। मेरे इधर-उधर देखने पर भी कुछ दिखाई नहीं दे पा रहा था। उतनी रात को जल्दबाजी में पहाड़ी से भाग पाना भी बेहद मुश्किल था। डर के मारे मेरी आत्मिय शक्ति भी मुझे धोखा दे रही थी। अब मेरे पास सिर्फ एक ही विकल्प था “आर या तो पार”  मैंने अपनी प्रेमिका को याद किया और फिर उस आवाज की जड़ तक जाने का प्रयास किया। काफी प्रयास करने के बाद मैंने जो भी देखा वह बेहद अचंभित कर देने वाला था,,,दरअसल जंगलों के बीच एकांत एवं शांत वातावरण में पहाड़ी का होना और उससे भी जरुरी उस पहाड़ी के ऊपर एक वृक्ष का। वृक्ष के ऊपर अनेकों प्रकार के पक्षी रात के समय विश्राम करते हैं और यही वजह थी पहाड़ी से अजीबोगरीब आवाजें आने की। इस तरह से मैंने उस आदिवासी गांव से पहाड़ी वाले भूत का अंधविश्वास समाप्त किया।।।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि दूर के ढोल सुहावने होते हैं,,,जब तक इंसान स्वयं किसी बात की जड़ तक नहीं जाता तब तक वह दूसरों की सूनी सुनाई बातों में फंसकर एक नये अंधविश्वास को जन्म देता है।।।
                                  (सच्ची घटना पर आधारित)

#मंगल प्रताप चौहान

परिचय:  मंगल प्रताप चौहान जी की जन्मतिथि-२० मार्च १९९८ और जन्मस्थली सोनभद्र की पृष्ठभूमि ग्राम अक्छोर, राबर्ट्सगंज (जिला-सोनभद्र ,उप्र) है। राबर्ट्सगंज सोनभद्र के आदर्श इण्टरमीडिएट कालेज से आपने  हाईस्कूल व इण्टरमीडिएट की शिक्षा लेकर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से बी०काम व यू०जी०डी०सी०ए० की शिक्षा प्राप्त किया। ततपश्चात डी०एल०एड० करके अध्यापन के साथ साथ साहित्य क्षेत्र में आप कार्यरत हैं। इसके अलावा एनसीसी,स्काउट गाइड व एनएसएस भी आपके नाम है। आपका कार्यक्षेत्र अध्यापन, लेखन एवं साहित्यिक काव्यपाठ के साथ साथ सामाजिक कार्यकर्ता एवं समाज में व्याप्त नकारात्मक ऊर्जाओं को अपने कलम की लेखनी से उखाड़ फेंकने का पूर्ण रूप से आत्मविश्वास है।अब तक बहुत ही कम समय में आपके नाम कई कविताओं व सकारात्मक विचारों का समावेश है।अब तक आपकी दर्जनों भर रचनाएं हरियाणा, दिल्ली ,मध्यप्रदेश, मुम्बई व उत्तर प्रदेशसे प्रकाशित हो चुकी हैं।

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