लोकतंत्र में मतदाता की भूमिका

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shashank mishra

समसामयिक मुद्दे पर परिचर्चाः

 

आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी चरम पर है।हर ओर हर तरह की सेनायें अपनी विजय पताका इस समर में फहराने को उतर चुकी हैं।कोई स्थायी दुश्मन न होने के इस दौर पर अपनी अपनी आवष्यकता और अपेक्षा अनुसार दौड़भाग चल रही हैआगत अनागत मेहमानों के स्वागत में कोई कसर नहीं छोछन चाहता है।राजनीति का पर्व नये नये शब्दों को गढ़ भारतीय राजनीति साहित्य का शब्दकोश बढ़ा रहा है।इसमें सबसे महत्वपूर्ण है मतदाता।उसकी कहीं पर किसी भी स्तर पर महत्व नकारा नहीं जा सकता और न ही कम करके आंका जा सकता है।वह न केवल राजनीति को संभालता है अपितु देश की दिशा भी तय करता है।कई बार राजनीति के स्तर के लिए अंकुश का काम भी करता है।मतदाता की भूमिका पर विद्वानों के विचार प्रस्तुत हैं :-

 

श्रीनगर उत्तराखण्ड से शम्भू प्रसाद भट्ट स्नेहिल का मत है कि देश का मतदाता लोकतंत्र को बनाये रखने हेतु उतना महत्वपूर्ण है जितना किसी प्राणी को जीने के लिए अन्न।वर्तमान में भी इन्हीं सब विचारों को ध्यान में रख समाज और देश के प्रति दायित्व को समझ मतदाता को अपने मत का उचित प्रयोग करना होगा।अतीत के अनुभवों से स्पष्ट है कि मतदाता ने जब जब गम्भीरता से सोच विचारकर मत का प्रयोग किया देश को आगे बढ़ाने विश्व में सम्मानजनक स्थान दिलाने वाले दल सत्तासीन हुए।इसके विपरीत मतदाता जब जब अपने निजी स्वार्थ जाति वर्ग क्षेत्रवाद में बह गया तो उसका खमियाजा देश प्रदेश को भुगतना पड़ा।विदेशों तक देश की छवि खराब हुई।प्रवासी भारतीयों को सिर छपाने जैसी नौबत आ गई।

मुम्बई से अलका पाण्डेय अग्निशिखा का कहना है कि लोकतंत्र यहां के मतदाताओं के निर्णय पर टिका है।लोकतंत्र का असली हीरो मतदाता है यह प्रत्यक्ष मतदान करे या अप्रत्यक्ष।यही उस पर मोहर लगाते है।लोकतंत्र के आधार के रूप में पंचायत से राष्ट्रपति तक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चुनते हैं दुर्भाग्य से यह सिर्फ चुनाव तक हीरो है।उसके बाद उसके द्वारा चुना हुआ प्रतिनिधि ही उसका मालिक बन जाता है।जबकि उस जनप्रतिनिधि को जनसेवक की भूमिका निभानी चाहिए।उसे समझना चाहिए कि लोकतंत्र मतदाता और चुनाव के बाद चुने हुए प्रतिनिधि के विश्वास पर टिका है।विधायक या सांसद जनता के सेवक सिंवधान के संरक्षक और लोकतंत्र के पहरेदार हैं।उसे यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यह मतदाता चुपचाप मतदान कर आता है पता भी नहीं चलता किसको वोट दिया।जब जरूरत होती है तो यह अपने गुप्त मत से सत्ता में परिवर्तन कर भारत के बन्द हो रहे सौभाग्य के दरवाजे पुनः खोल देता है।यह हमारे लोकतंत्र की परिपक्वता और विशेषता भी है।पड़ोसी देशों म्यांमार बंगलादेश पाकिस्तान श्रीलंका तरह हमारे देश का मतदाता कभी हारता नहीं अपितु हर बार और अघिक परिपक्व होकर मतदान करके अपनी नयी सरकार चुनता है।

शहीदों की नगरी शाहजहांपुर से शिखर शाहजहांपुरी लोकतंत्र में मतदाता ही सब कुछ है क्योंकि मतदाता के सही मत पर ही लोकतंत्र की मजबूत नींव स्थापित होती है।देश के हर तरह के विकास की इमारत गढ़ी जाती है। समाज अपने दायित्वों के प्रति सजग रहता है।इसलिए लोकतंत्र में मतदाता को सोच समझकर निर्णय लेना चाहिए साथ ही सही और काबिल व्यक्ति को ही मत देना चाहिए।उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसका एक मत किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के आने वाले पाँच सालों के लिए भविष्य का निर्माण करता है।समाज की समरसता और देश की दिशा और दशा का आधार बनता है।अतः उसके महत्व को ध्यान में रखकर ही प्रयोग करे दूसरों को भी ऐसा करने को कहे।

साहिबाबाद से सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा का कहना है कि लोकतंत्र तो है ही लोक के लिए।लोक अर्थात जनता ने शासन को व्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए स्वंय ही इस व्यवस्था का अन्वेषण किया है कि उसकी दृष्टि में योग्यतम व्यक्ति जो उसके और उसके देश एवं समाज के कल्याण एवं सर्वांगीण उन्नति प्रतिष्ठा के प्रति समर्पित हो वही उसके देश का स्वंय उसका भी शासक हो। निजी स्वार्थों के साए में शोषक न हो।

इसलिए वह अपने शासक की कार्यप्रणाली के अनुरूप उसका आकलन करता है और फिर अपना मत व्यक्त करते हुए अपनी अगली सरकार चुनता है।लोकतंत्र में शासक बदलने या न बदलने का विकल्प उपलब्ध होता है।बिना मतदाता के लोकतत्र और बिना लोकतांत्रिक व्यवस्था के मतदाता का कोई महत्व है।दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।दोनों के कल्याण व मजबूती के लिए आवश्यक है कि मतदाता मतदान करते समय इस दृष्टि से पर्याप्त शिक्षित और दूर दृष्टा हो कि उसके हित देशहित के बिना अधूरे हैं।देश आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत होगा तो स्वंय उसके सुविधा सम्पन्न बनने में कोई बाधा नहीं आएगी।साथ ही राष्ट्र को भी यह प्रतिबद्धता दिखानी होगी कि उसका शासन जितना पारदर्शी और निष्पक्ष होगा।धीरे धीरे ही सही वह उतना ही मजबूत और समृद्धिशाली बनेगा।दोनों के हित एक दूसरे के हितों को सार्थक करते हैं।कानून का शासन दोनों को अनुशासित बनाता है।

          प्रेरणा पत्रिका के संपादक विजय तन्हा का कहना है कि लोकतंत्र में मतदान का दिवस एक महापर्व के रूप में मनाया जाता है जिसमें मतदाता को यह अधिकार प्राप्त होता है कि अपने विवेकानुसार जनप्रतिनिधि का चयन करे।उस जनप्रतिनिधि द्वारा ही देश को संचालित करने हेतु एक सरकार का निर्माण होता है।इस मतदान रूपी महापर्व में मतदाता का बहुत बड़ा दायित्व होता है जिसको निभाने के लिए मतदाता को चाहिए वह दलगत जातिगत विचारों से हटकर और तरह तरह के दिए जाने वाले प्रलोभनों से दूर रहकर निःस्वार्थ होकर मतदान करे।

युवा मतदाता आकाश अग्निहोत्री का मानना है कि लोकतंत्र में मतदाताओं को अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार है।मतदाता अपने चुने हुए जनप्रतिनिधि के आचरण और कार्यों का आंकलन भी कर सकता है।ताकि अगली बार निष्क्रिय और अकर्मण्य को नकारा जा सके।जन इच्छा के विरुद्ध लड़ने वाले को पराजित किया जा सके।इसका लाभ यह है कि जनप्रतिनिधि पर जनमत का दबाब रहता है।राजनीतिक दल भी सचेत रहते हैं अन्यथा जनमत दलों को कमजोर ही नहीं करता अपितु उनकी सरकारों को बदल भी देता है।मतदाता की इच्छा से अर्श पर झूम रहे दल और उनके नेता जल्दी ही फर्श पर आ जाते हैं।हमारे देश में ऐसा कई बार हुआ है।भारतीय लोकतंत्र परिपक्व प्रौढ़ और सच्चा माना जाता है।फिर भी एक सफल लोकतंत्र में जैसे मतदाताओं में गुण होने चाहिए वैसे अभी तक नहीं हैं या अल्प मात्रा में हैं।जिसका लाभ उठाने में समय समय पर विभिन्न राजनीतिक दल या उनके नेता नहीं चूकते है।परिणामतः योग्य अनुभवी कर्मठ व ईमानदार कई बार चुनाव लड़ने का साहस नहीं जुटा पाते या फिर अपनी जमानत जब्त करा बैठते हैं।अतः मतदान को अच्छी तरह से निभाने भारतीय लोकतंत्र की मजबूती के लिए मतदाता का जागरूक होना बहुत आवश्यक है।तभी उससे अपनी भूमिका के भलीभांति निर्वहन की अपेक्षा की जा सकती है।

#शशांक मिश्र

परिचय:शशांक मिश्र का साहित्यिक नाम `भारती` और जन्मतिथि १४ मई १९७३ है। इनका जन्मस्थान मुरछा-शहर शाहजहांपुर(उत्तरप्रदेश) है। वर्तमान में बड़ागांव के हिन्दी सदन (शाहजहांपुर)में रहते हैं। भारती की शिक्ष-एम.ए. (हिन्दी,संस्कृत व भूगोल) सहित विद्यावाचस्पति-द्वय,विद्यासागर,बी.एड.एवं सी.आई.जी. भी है। आप कार्यक्षेत्र के तौर पर संस्कृत राजकीय महाविद्यालय (उत्तराखण्ड) में प्रवक्ता हैं। सामाजिक क्षेत्र-में पर्यावरण,पल्स पोलियो उन्मूलन के लिए कार्य करने के अलावा हिन्दी में सर्वाधिक अंक लाने वाले छात्र-छात्राओं को नकद सहित अन्य सम्मान भी दिया है। १९९१ से लगभग सभी विधाओं में लिखना जारी है। श्री मिश्र की कई पुस्तकें प्रकाशित हैं। इसमें उल्लेखनीय नाम-हम बच्चे(बाल गीत संग्रह २००१),पर्यावरण की कविताएं(२००४),बिना बिचारे का फल (२००६),मुखिया का चुनाव(बालकथा संग्रह-२०१०) और माध्यमिक शिक्षा और मैं(निबन्ध २०१५) आदि हैं। आपके खाते में संपादित कृतियाँ भी हैं,जिसमें बाल साहित्यांक,काव्य संकलन,कविता संचयन-२००७ और अभा कविता संचयन २०१० आदि हैं। सम्मान के रूप में आपको करीब ३० संस्थाओं ने सम्मानित किया है तो नई दिल्ली में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर वरिष्ठ वर्ग निबन्ध प्रतियोगिता में तृतीय पुरस्कार-१९९६ भी मिला है। ऐसे ही हरियाणा द्वारा आयोजित तीसरी अ.भा.हाइकु प्रतियोगिता २००३ में प्रथम स्थान,लघुकथा प्रतियोगिता २००८ में सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुति सम्मान, अ.भा.लघुकथा प्रति.में सराहनीय पुरस्कार के साथ ही विद्यालयी शिक्षा विभाग(उत्तराखण्ड)द्वारा दीनदयाल शैक्षिक उत्कृष्टता पुरस्कार-२०१० और अ.भा.लघुकथा प्रतियोगिता २०११ में सांत्वना पुरस्कार भी दिया गया है। आप ब्लॉग पर भी सक्रिय हैं। आप अपनी उपलब्धि पुस्तकालयों व जरूरतमन्दों को उपयोगी पुस्तकें निःशुल्क उपलब्ध करानाही मानते हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-समाज तथा देशहित में कुछ करना है।

 

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