खोजना होगा अमृत कलश

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काव्य संग्रह………….

राजकुमार जैन ‘राजन’ का प्रस्तुत काव्य संग्रह “खोजना होगा अमृत कलश” प्राप्त करने का सौभाग्य मिलने से हमें बहुत ख़ुशी हुई है |

देव-दानव “अमृत कलश” के लिए एक दुसरे से लड़ाई कर रहे थे | इसे प्राप्त करने की स्पर्धा चलती थी | हमें कोई संघर्ष नहीं करना पड़ा है और देवो की तरह अमृत कलश मेरे हाथों में पहुँच गया है |

यह कविता संग्रह से एक बार जरुर अमृत पीना होगा | इस में अंधकार से प्रकाश की ओर ले जानेवाली ये रचनाए हमें प्रेरित करती है | हमरा आत्म विश्वास बढाती है | समाजीक, आर्थिक, प्राकृतिक, सामाजिक परम्पराओ में पनप रही विषमताओं के प्रति आक्रोश है | हताश और हरे हुए व्यक्ति को प्रेरित करती ये कवितायेँ आजके संघर्षमय जिन्दगी खोते हुए रिश्तों के मूल में ठुकराघात करती है | अंधकार से प्रकाश की ओर आगे बढ़कर जीवन में एक नया सूरज उगाकर सहायता प्राप्त करने प्रेरित करती ये कवितायेँ बहुत उत्कृष्ट है | भारतीय लोकहित की ओर कविता के माध्यम से इशारा भी किया है |

इनकी कवितायेँ आशा और विश्वास जगाती है | कवि के कला रेखांकन भी बहुत सुंदर है | राजन में संवेदना बहुत भरी पड़ी हुई है तभी तो इतनी संवेदनशील रचना का जन्म हुआ है | इसके कारण सामाजिक मूल्यों, सांस्कृतीक, राजनितिक, आर्थिक और पुराने समय से लेकर वर्तमान समय तक अपने दिव्य द्रष्टि इसे एक नया मार्ग दिखाती ये कवितायेँ बहुत प्रेरक है | में इन्हें अपने दिल से पवित्र मन से हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं देता हूँ |

कविताओं का विवरण देनेका और किसी किताब के बारे में अपना मत व्यक्त करने का मेरा यह प्रथम प्रयत्न आप सभी को पसंद आएगा ऐसी आशा करता हूँ | अगर इसमें कोई गलती हो तो क्षमा याचता हूँ |

अमृत कलश में “लाखों संकल्प” कविता में कवि ने आज के युग की चिंताओं का जिक्र किया है | द्रोणाचार्य, अभिमन्यु और अर्जुन महाभारत के पात्रों का उदहारण देकर आज के हस्तिनापुर की बातें की है और आजके युग में दुर्योधनों के कमी नहीं है ये बात कविता के माध्यम से की गई है |

आज मानवता और विश्वास खो गये हैं | आज-कल खुनी खेल जो खेले जा रहें हैं वो इतिहास बन जायेगा | ऐसी संभावना कवि ने देखी है, ये “बन जायेगा इतिहास” कविता से ये संभावना निकल आई है |

इन्सान को तुटते हुए दर्पण को देखना है, सर्वथा जेसे सार्थकता नहीं खोता | इस तरह आज दर्पण बनोगे तो सार्थकता प्राप्त होगी ये बात “सार्थकता” कविता में लिखी गई है |

यह धरती पर अमृत के जगह “विष बीज किसने बोया?” इसकी चिंता कवि ने प्रकट की है |

कहीं बम धडाके, विधवाओं के चीत्कार, पशुओं का विलाप, लूंट हत्या, बलात्कार की घटनाएँ देखकर कवि ने अपील की है कि आओ हम सब मिलकर जिन्दगीका गीत लिखे ये बात “जिन्दगी का गीत” में राजन जी ने की है |

साँझ के अंधेरों में चांदनी की शीतलता, धर्मशालाओं में गुरुओं की वाणी को ढूँढने में इन्सान असमर्थ है | आज सूर्य किरणों की चमक ने इन्सान को पक्षिओं का कलरव, फूलों का रंग, मिट्टी की गंध, गीतों की ह्रदय को छू लेने वाली वाणी आज अंत हिन यात्रा का अनुभव कराता है ये “अंत हीन अनुसंधान” कविता में दिखाया गया है |

“अंधकार के बीज” कविता में अंधकार के सामने लड़ने के लिए इन्सान को अपना अंतर्मन की मशाल जलाने को आह्वान किया गया है |

फूलों की मुस्कराहट, हवा की खुशबु, चांदनी के पांव के घुंघरू और संस्कृति को ले जाने वाले ‘तुम कौन हो’?. आजकल मरनेवालों से मरवाने वाले बड़े होते हैं |

पतझड़ से डरने का मतलब, जिन्दगी की दौड़ में मिलती कठिनाईयां से नहीं डर कर एक हाथ में बसंत लेकर उसका सामना करने चलते रहने की बात कवि ने “हाथ में बसंत” कविता में की है |

आसमानी हवाओं की खुशबु, धीरे धीरे बहती नदी के कल कल, चिड़िया के चिहु चिहु के साथ मुस्कराहट और सूखे गुलाब के फुल की तरह तुटता हुआ विशवास, श्रद्धा  को देखकर कवि व्यथित होता है | इसे “नियति” का क्रम मान के स्वीकार किया है |

मंजील की तलाश में कंटीला सफर में चलते हुए भी इन्सान कभी हारा नहीं है | वो रुक रुक कर संघर्ष के साथ चलता आगे बढ़ रहा है | “हारा भी नहीं हूँ मैं” कविता में देखने को मिलती है |

दादर पुल का उदहारण देकर कवि राजन ने “हाँसिये पर वह” कविता में लिखा है की पुल के नीचे एक निराश मन के साथ रोशनी का टुकड़ा ढुंढता, फटी पेंटवाला, स्वप्नों के घरोंदे से बुनता हुआ, अपमानित होता हुआ, जुल्म सेहता हुआ, खामोशियों के साथ रोशनी की तमन्ना के साथ चलते इन्सान का सुंदर वर्णन किया है |

स्वप्नों के साथ नई आशा लेकर, आती हुई सुबह शाम होते ही इच्छाएं मौन हो जाती है | इस लिए कवि राजन कहतें कि, समय के हाथ में रोशनी को लेकर धरती में इसे उगाओ, शब्द बीज खाद डालकर धैर्य रूपी पानी से सिंचन करने से तुम्हे सफलता जरुर प्राप्त होगी | ऐसा बोध ‘अस्तित्व बोध’ कविता में दिया गया है |

आत्मीय के स्थान पर मुखौटा के रुप में मिलते सफेद पोषाक के सेवक द्वारा चिर-हरण, इच्छा, लालसा, लोभ, प्रमाद, आस्था खो चुके इन्सान बन गया है, लेकिन प्रतीक्षा है की सूर्य के किरणों जैसी,  गम जैसी आंधियां दूर करने के लिए ”आशा की लौ जलती रहेगी” कविता में ऐसी कल्पना कवि ने की है |

स्वप्नों की पगदंडी पर चलते चलते आज इन्सान के पांव थम गये हैं | भौतिकता के मीठे विष में विश्वास गलत साबित होने लगा है | फिर भी वो चल रहा है, बढ़ रहा है सूर्य की तलाश में | कवि को आशा है कि जीवन में एक नई “स्वप्नों की पगदंडी” जरुर खुलेगी और सफलता प्राप्त होगी |

आज लोगों के जीवन में अजीब सी ख़ामोशी, मौन और सन्नाटा है | अनाम, अन गिनत पीड़ा और प्रश्नों का डंख से समय कहीं खो गया है | कवि कहेते हैं कि सफलता के लिए आशा का पूरा “सूरज अपनी हथेली में उगाओ” जरुर सफलता प्राप्त होगी |

भाषणों के माध्यम से एक शतरंगी चाल वाला अभियान चलाया जा रहा है | घडियाली आंसू बहाया जा रहा है | गाँव के चौपाला से लेकर मंदिर, मस्जिद, धर्मशाला और संसद के गलियारों के तक बड़ी सावधानी से इन्सान इन्सान के बीच अलगतावाद पैदा कर के विष बांटा जा रहा है | इसलिये कवि ‘राजन’ के मन में सवाल उठकर बार बार कहता है कि ये दुनिया ऐसी क्यूँ है? “एक सवाल” कविता में कवि ने कहा है की वही पुराना सवाल पूछता रहूँगा कि ये दनिया ऐसी क्यूँ है |

आज इन्सान के कानों ने सुनना छोड़ दिया है | ह्रदय पत्थर सा हो गया है | झूठ कपट के वेश में रिश्तों को छलनी कर दिया है | इन्सानियत का रंग खो गया है | क्या यही है अच्छे दिन का बोध क्या यही है “अर्थ युग का चमत्कार”? कवि के मन में प्रश्न उठता है |

सूखे फूलों ने अपनी गंध को पकड़ रखी है | स्नेह का अभाव है | आज आशाओं के दीप बुझते जा रहे है | कोई सूखे गुलाब के फुलों से महसूस करें | क्यों अहंकार के सामने जंग नहीं छेड़ते हम? “सूखे फूलों की गंध” कविता में ये सुंदर बात कवि ने की है |

कवि ने बेरोजगार की पीड़ा बहु खूबी से व्यक्त की है | बेरोजगार को हमारी दुनिया का महत्व का अंग माना है | ऐसी बात कवि ने “बेरोजगार” कविता के माध्यम से की है |

नहीं देखा मैंने समुद्र फिर भी मेरे मन को कोई छूता है तो मेरे मन के पेहरुओं को लहरे उठाकर फेंक देती है | तूफान बाद समुद्र खामोश हो जाता है | “नहीं देखा समुद्र” फिर भी उसकी गर्जना को महसूस करता हूँ |

अंतहीन आकाश में विश्वास की बाँहों में अजीब सी ख़ामोशी और सन्नाटा को चिरते हुए मन में उठतें है, इन सांसों से गुजरते है | भविष्य को एक मजबूत समाज की तलाश पुरी करने के लिए आँखों में अंकुरित स्वप्नों को खींचने के लिए तुम्ही ने तो कहा था कि “वसंत जरुर आएगी एक दिन”| कवि कहते है कि प्यार और जीवन की परिभाषा करते कभी गाढ रिश्ते भी अपना अर्थ खो चुके हैं | तुटते हुए मूल्यों की आंधी से आज संबंधों का वृक्ष हिल रहा है |

कवि राजन कहते हैं कि सूरज ढलने के बाद अँधेरा हो जाता हैं | फिर सुबह में रोशनी आती है | इस लिए अँधेरे से डरो मत | फसलें शांति की उगायेंगे तो प्यार की जिन्दगी शुरु होगी | इस लिए “भागे न कोई हार के” |

तुटी हुई खटिया पर खाँसती लेटी हुई माँ, सयानी हो रही मुनिया, किताब और पेन के लिए ज़िद करता मुन्ना को देख कर अनाज मंडी में कंधे पर बोरियां ढोता, बीडी के कश में धुंआ उठाता, पसीने से तर-बतर “वह आदमी निराश नहीं है” |

संस्कृति के पोषक इस देश में दौपदी के चीरहरण आज भी हो रहे है | आदमी नपुंसक हो गया है | आदमी तुम कायर हो | कवि कहते है कि संस्कृति रो रही है | समय शरमिंदा है | आज नर बीज खो गया है |

प्रकृति के तांडव के कारण उतराखंड, कभी नेपाल, कभी कश्मीर में मौत की बरसात हो रही है | आज भरे पेटों के जूठन भूख से बिलखने लगा है जीवन | आतंक के छाया को दूर करने के लिए रोशनी के पेहरूओं को जलती मशाले लेकर नया प्रकाश फेलाने की सीख कवि राजन “रोशनी के पेहरुओं” कविता में दे रहे है |

सृष्टि में सुख के बाद दुःख और दुःख के बाद सुख आता है | ये निरंतर प्रक्रिया चलती है | नन्ही कोपलें फूटती है और सन्देश देती है कि एक नया संघर्ष उत्कर्ष लाती है |

अंधकार में होती हल-चल को मिटाने के लिए उजाला फेलाने को सूरज की इजजत लेकर एक किरण हमारी जिजीविषा को पुनर्जीवन देगी |

इस देश की बदहाल प्रजा को बड़े बड़े स्ट्रीट लाईट की रोशनी जेसे जगमगाते आश्वासन मिलते हैं | एक मुठठी होंसले में रोशनी सजाते अंधकार को पराजित करने के लिए “एक सूरज फिर उगाना होगा” कविता में सुझाव दिया गया है | एक सूरज फिर उगाना होगा |

रोशनी में रहकर भी अंधकार में जी रहे इन्सान आज मरने से पहेले मरना चाहता है | समय के सूरज को अपने हाथों हिलाकर बोध कराता सूरज से एक नई सुबह जरुर होगी |

‘बचपन की बरसात’ कविता में कवि कहते है | मुशलाधार बारिश में चूं रही पानी की टप टप को कवि ने अमृत कलश में ढोया है |

“खोजना होगा अमृत कलश” कविता में राजन जी बताते है कि रंग बदलती दुनिया में दर्द का रंग नहीं बदल पाता है | इन्सान इतना बौना हो गया है कि अपना कहा ही भूल गया है | विश्वास भटक गया है | मुस्कूराहट भीड़ में खो गई हैं | संबंधों पर पहरा है | इंसानियत बहरी है |

जीवन मूल्य अंधकार में खो गया है | सब तरफ मायाजाल में जज्बात और भावनाओं की कोई किंमत नहीं है इस दुनिया में |

कवि कहते हैं कि, सपनों की दुनिया से बाहर निकल कर यातना शिविर से फैले जाल को अब तोडना होगा ऐसा आह्वान करते है | धरा पर जो प्यार की खुशबु मानवता के घर आंगन को रोशन करे, सदभाव के दिए जलाए, ऐसा अमृत कलश खोजना होगा | उदय होता सूरज “सत्यम शिवम् सुन्दरम” का प्रकाश फिर से फैला देगा |

राजकुमार राजन बाल साहित्य के क्षेत्र में विस्तार से काम कर रहे हैं | ३० से अधिक पुस्तकें प्रकाशित है | सौ से अधिक पुरस्कार प्राप्त किये है | साहित्य और समाज के प्रति ऐसी उमदा भावना बहुत कम लोगों में दिखाई देती है | राजन जी युवा कवि है | साहित्य से समभावना, रचनात्मक, सामाजिक सदभावना और समाज के प्रति संवेदना प्रकट करते कवि है |

मैंने विस्तार से संग्रह की प्रत्येक कविताओं का विवेचन पाठकों के लिए संक्षिप्त में देने का प्रयास किया है | जिस कविता का विवेचन हम से छुट गया है वो कवितायेँ पाठकों के लिए विवेचन करने हेतु मैंने छोड़ दिया है |

अंत में यही कहूँगा कि राजकुमार जैन ‘राजन’ बहुत इमानदार, मानवतावादी, समाज उत्प्रेरक और एक सैनिक की भूमिका निभाते है | वर्तमान के अंधेरों में भी ये कवि जाग रहा है और काम के लिए प्रश्न खोज रहा है | आप उनकी कविताएँ पढ़ेंगे तो आपको भी ये कवितायेँ सार्थक लगेगी ऐसा हमें विश्वास है |

मेरी दिल से हार्दिक बधाई एवं शुभ कामनाएं श्री राजकुमार जैन “राजन” जी को अर्पित है |

         #गुलाबचन्द पटेल

परिचय : गांधी नगर निवासी गुलाबचन्द पटेल की पहचान कवि,लेखक और अनुवादक के साथ ही गुजरात में नशा मुक्ति अभियान के प्रणेता की भी है। हरि कृपा काव्य संग्रह हिन्दी और गुजराती भाषा में प्रकाशित हुआ है तो,’मौत का मुकाबला’ अनुवादित किया है। आपकी कहानियाँ अनुवादित होने के साथ ही प्रकाशन की प्रक्रिया में है। हिन्दी साहित्य सम्मेलन(प्रयाग)की ओर से हिन्दी साहित्य सम्मेलन में मुंबई,नागपुर और शिलांग में आलेख प्रस्तुत किया है। आपने शिक्षा का माध्यम मातृभाषा एवं राष्ट्रीय विकास में हिन्दी साहित्य की भूमिका विषय पर आलेख भी प्रस्तुत किया है। केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय और केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय(दिल्ली)द्वारा आयोजित हिन्दी नव लेखक शिविरों में दार्जिलिंग,पुणे,केरल,हरिद्वार और हैदराबाद में हिस्सा लिया है। हिन्दी के साथ ही आपका गुजराती लेखन भी जारी है। नशा मुक्ति अभियान के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी दवारा भी आपको सम्मानित किया जा चुका है तो,गुजरात की राज्यपाल डॉ. कमला बेनीवाल ने ‘धरती रत्न’ सम्मान दिया है। गुजराती में ‘चलो व्‍यसन मुक्‍त स्कूल एवं कॉलेज का निर्माण करें’ सहित व्‍यसन मुक्ति के लिए काफी लिखा है।

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।