विरह बसंत का

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kumud shreevastav
सखी ! रहा कहां कब वह बसंत
मधुमास का प्यारा वो बसंत
बढ़े जंगल कंकरीट के अब
खो गया उन्हीं में यह बसंत
जब पीली सरसों के खेतों में
 हम सखियाँ दौड़ लगाते थे
चने ,मटर की मीठी बाली को
घुसकर खेतों में सब खाते थे
सखी कहां ..
सखी कहां गया प्यारा बसंत
पेड़ों पर आती थी जब बौराई
लगती थी दुपहरी अलसाई
उठती थी दिल में हूक अनंत
सखी कहां रहाअब …
गन्ने के रस मीठी केरी संग
अपनीं शाम यूं ढ़लती थी
 धानी चुनरीओढ़े धरती माँ
दुल्हन के रूप में सजती थी
सखी कहां रहा …
जब कोयल गीत सुनाती थी
पनघट पर धूप खिलाती थी
प्यारा लगता था वो बसंत
सखी रहा कहां अब वो बसंत
सब गांव शहर में रहे बदल
नष्ट हुये पक्षी ,बाग जंगल
अब गमलों में ही आता बसंत
बस मन ललचाता ही बसंत
सखी कहां रहा अब वो  बसंत…
#कुमुद श्रीवास्तव वर्मा.
परिचय- 
नाम _कुमुद श्रीवास्तव वर्मा
साहित्यिक उपनाम — गद्य गोविंदे ( अध्यक्ष ,साहित्य संगम संस्थानद्वारा प्रदत्त)
वर्तमान पता-लखनऊ(उत्तर प्रदेश)
विधा — गद्य ,पद्य ,(संस्मरण, लेख ,  कहानीं ,लघु कथा ,कवितायें 

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