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कहाँ से चले थे, और कहाँ आ गए ,
जाना था कहाँ ,और कहाँ हम पहुंच गए /
मंजिले मिली बहुत, पर हम ठहरे नहीं ,
क्योकि मुझको खुद, पता ही नहीं था /
की मेरी आखिर, मंजिल कहाँ है //
किसको इसका दोष दे हम, सभी तो अपने हैं,
फिर क्यों सभी, अपनो से ही लड़ते है /
सारी मर्यादा को, भूल जाते है ये लोग,
फिर अपने ही महापुरुषों को, मंच से गाली दे जाते है /
और देश में बनीबनाई व्यवस्था को बिगड़ते है //
देशवासियों को सपने देखना, बहुत अच्छी बात है,
देश की जनता को, लॉलीपॉप देना बुरी बात है /
फिर भी ये लोग, क्या कुछ नहीं बोल जाते है,
और अपने वादों से, एक दम मुकर जाते है /
फिर कहते है की, ये सब तो मैंने नहीं कहाँ था //
माना की आधुनिक, क्रांति आई है देश में,
पर सारे संस्कारो की, बलि को चढ़ाकर /
छोटे बड़ो का अब तो, लिहाज ही कहाँ है,
तभी तो हमारे देश का, आज ये हाल है /
यहाँ तक पहुँचाने के लिए, धन्यवाद किसका अदा करूं ?
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
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