रावण की पीड़ा

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rajbala

मैं जल-जल के हूं हारा,
कितनी बार जलाओगे..
मन में जो रावण बैठा है,
कब उसे भगाओगे।

हर बार जलाया जाता हूं,
कैसा अभिशाप मिला मुझको..
मर के भी जिंदा रहता हूं,
कैसा यह पाप सिला मुझको।

सबने ही दोषी पाया है,
मैंने सीता का हरण किया..
नेह की भिक्षा भर मांगी,
मैंने स्पर्श न वरण किया।

बस्ती में जितनी हैं सीता,
रावण उतने गलियारे में..
खिड़की पर कोई मुंडेर पे,
कोई बीच राह चौबारे में।

सीता सबसे ही छली गई,
है वचन राम ने तोड़ दिया..
संदेह के घेरे में लेकर,
मझधार में छोड़ दिया।

                                                                                 #राजबाला ‘धैर्य’

परिचय : राजबाला ‘धैर्य’ पिता रामसिंह आजाद का निवास उत्तर प्रदेश के बरेली में है। 1976 में जन्म के बाद आपने एमए,बीएड सहित बीटीसी और नेट की शिक्षा हासिल की है। आपकी लेखन विधाओं में गीत,गजल,कहानी,मुक्तक आदि हैं। आप विशेष रुप से बाल साहित्य रचती हैं। प्रकाशित कृतियां -‘हे केदार ! सब बेजार, प्रकृति की गाथा’ आपकी हैं तो प्रधान सम्पादक के रुप में बाल पत्रिका से जुड़ी हुई हैं।आप शिक्षक के तौर पर बरेली की गंगानगर कालोनी (उ.प्र.) में कार्यरत हैं।

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