करती रही माँ बस इंतज़ार…

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priyanka

जीवन भर,
करती रही माँ
बस इंतज़ार…..

मेरे आने की आहट,
महसूस की जब कोख में
बिना जाने भी मुझे
मेरे जन्म लेने का…
करती रही माँ
बस इंतज़ार……।

गोदी में उसकी
जब अठखेलियाँ करते
दिन भर उलझाया उसे
थकी हारी,मेरे सो जाने का…
करती रही माँ
बस इंतज़ार…..।

नटखट बचपन में,
हैरान किया,छिपा,सताया..
गिरने-उठने की लीला में
मेरे मुख से ‘माँ’ सुनने का..
करती रही माँ
बस इंतज़ार…..।

मैदानों में घंटों बिता कर,
आधा दिन बाहर गुजा़र कर..
लौटे थक हार के जब ,
चौखट पर खड़ी-खड़ी..
मेरे घर वापस आने का…
करती रही माँ
बस इंतज़ार…..।

मेरे हर पल को साझा कर,
मेरे संग जागीं रातों भर..
हँसकर हर नाज़ उठातीं थीं
इम्तेहान मेरे,पूजा माँ की,
जीवन पथ पर चल देने को,
तैयार मेरे हो जाने का….
करती रहीं माँ,
बस इंतज़ार….।

लाड़ लुटाकर जी भर के,
परियों-सा मुझे सजाकर के..
ममता की छांव ओढ़ाकर के
डोली में मुझे विदा करके
आंगन शहनाई बजने का….
करती रहीं माँ
बस इंतज़ार….।

लड्डू पकवान बनाकर के,
घर को संवार-सजाकर के..
नर्म बिछौने फर्श बिछा
तपती गर्मी को सर्द बना..
आगन में वंदनवार सजा
मेरे मायके लौट आने का…..
करती रहीं माँ
बस इंतज़ार….।

कर्तव्य निभाते,उम्र गई,
थक कर के चूर हो गई माँ..
कुछ कहती ना,सहती सब कुछ
तन की पीड़ा,मन का बिछोह
श्वांसों की अंतिम माला जपते,
अस्पताल के बिस्तर पर लेटीं
मेरे पहुँच जाने का…..
करती रहीं माँ
बस इंतज़ार….।

नयनों के सम्मुख पा मुझको,
कुछ चैन मिला अंतरमन को..
आश्वस्त हुईं मेरा हाथ थाम
तृप्ति से मुस्काई थीं माँ..
धीमे से नैना मूंद लिए,
ईश्वर से एकाकार हुईं…
तुमसे फिर से मिल पाने का
तुझको फिर से माँ कहने का….
करती रहती हूँ मैं माँ
बस इंतज़ार….।

                                                                       #प्रियंका बाजपेयी

परिचय : बतौर लेखक श्रीमती प्रियंका बाजपेयी साहित्य जगत में काफी समय से सक्रिय हैं। वाराणसी (उ.प्र.) में 1974 में जन्मी हैं और आप इंदौर में ही निवासरत हैं। इंजीनियर की शिक्षा हासिल करके आप पारिवारिक कपड़ों के व्यापार (इंदौर ) में सहयोगी होने के साथ ही लेखन क्षेत्र में लयबद्ध और वर्ण पिरामिड कविताओं के जानी जाती हैं। हाइकू कविताएं, छंदबद्ध कविताएं,छंद मुक्त कविताएं लिखने के साथ ही कुछ लघु कहानियां एवं नाट्य रूपांतरण भी आपके नाम हैं। साहित्यिक पत्रिका एवं ब्लॉग में आपकी रचनाएं प्रकाशित होती हैं तो, संकलन ‘यादों का मानसरोवर’ एवं हाइकू संग्रह ‘मन के मोती’ की प्रकाशन प्रक्रिया जारी है। लेखनी से आपको राष्ट्रीय पुष्पेन्द्र कविता अलंकरण-2016 और अमृत सम्मान भी प्राप्त हुआ है।

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ओछे मन के, लोग होते ओछे ही बड़े न होते। दौड़ते लोग, शुगर से लाचार संयम नहीं। मुखौटे लगा, छुपाते हैं चेहरे सच्चे बनते। चैन हराम, दौड़ें जीवन भर धनी बनते। सुनें गालियाँ, लाचार मज़बूर नन्हें बालक। कटते पेड़, लाचार पंछियों का नहीं ठिकाना। मन लालची, थी रिश्वत खाई जेल […]

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।