भगत सिंह नाम है मेरा 

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nilima mishra
वो गोली आज तक  छलनी है करती जानों
दिल अपने ,
है जलियाँबाग का मातम मेरी आँखों में
बचपन से ।
भगत सिंह नाम है मेरा मैं फ़ौलादी हूँ तन
मन  से,
मेरा चोला बसंती  रंग दिया है माँ ने
बचपन से ।
क़सम खाता हूँ मैं अपनी हर इक आज़ाद
धड़कन से ,
निभाऊँगा मैं पूरा फ़र्ज़ मिट्टी के हर एक
कण से ।
सितम की इन्तहा भी कर ले तू ऐ जान
दुश्मन  के ,
यही है ख्वाब मेरा मुल्क हो आज़ाद
दुश्मन  से ।
जवानी काम आ जाये वतन की शान की
ख़ातिर ,
रगों में दौड़ता है खून हर पल बस इसी
धुन में ।
मेरे साथी है बटुकेश्वर ,जतिन ,आज़ाद और
सुखदेव ,
सभी का एक है रस्ता सभी बाँधे कफ़न सर
 पे ।
वो लाला जी पे करना जुर्म न बर्दाश्त
हमको था ,
मिली सांडर्स को इसकी सजा लाहौर  के
पथ में ।
वो बम फेंका था जब संसद में हम तो भाग
सकते थे ,
मगर हम पीठ पर कब वार करते अपने
दुश्मन के ।
मुझे साम्राज्यवादी ताक़तों को बस
कुचलना है ,
हो ज़िंदाबाद का नारा बुलंदी पर जमीं
नभ में   ।
न रोना एक भी आँसू शहीदों की मज़ारों
पर ,
चढ़ाना फूल उन पर  अपने केवल ह्रदय
उपवन के ।
अभी भी मुल्क में बाक़ी हैं कितने  काम
करने हैं ।
बचा कर लाज रखो शान झंडे की नये
युग में ।
#डा० नीलिमा मिश्रा

matruadmin

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