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धर्म शाश्वत् है .अजर अमर अविनाशी है .सृष्टि में जब तक मानव सभ्यता है धर्म भी रहेगा . धर्म क्या है ? जिसे हम धारण करते हैं वह धर्म है .अर्थात धर्म एक ऐसी जीवनशैली है जिसे हम अपने आचरण में स्वेच्छा से स्वीकारत है . मानव जीवन के लिए धर्म की नितांत आवश्यकता है. केवल मानव ही नहीं बल्कि सृष्टि के सारे प्राणी एक निश्चित आचरण संहिता के परिपालन में अपना जीवन व्यतीत करते हैं अर्थात इस सृष्टि का प्रत्येक जीव अपने धर्म का पालन करता है . जीवन में आचरण संहिता का निर्धारण कर हम धर्म का पालन करते .प्राणी जिस आचरण संहिता को स्वयमेव सहर्ष स्वीकार करता है वह धर्म है . धर्म कट्टरपंथ का पर्याय कभी नहीं हो सकता धर्म का उद्देश्य जीवन को श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर बनाना है . अपने उद्देश्य की प्राप्ति में वह स्वयं के स्वरूप में बदलाव को भी स्वीकारता है .
अच्छा धर्म उदार होता है . प्रत्येक युग में धर्म का अपना अस्तित्व रहा है चारों युगों में कलयुग को अधर्मी युग माना गया है . अर्थात कलयुग में धर्म को सबसे कमजोर होना बताया गया है . विद्वजनों के इस आकलन से मैं असहमत हूँ . यह ऐसा युग है जिसमें धर्म सबसे प्रबल होता है . धर्म कलयुग की कामधेनु है . इस युग में धर्म का प्रवाह सर्व प्रबल होता है . धर्म की हवा मनुष्य को सतत् झकझोरते रहती है .
आज प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म का भलीभांति ज्ञान है .अपने आराध्य का नारा वह वायुमंडल के जरिए अपने कानों में सुनते रहता है . उसके धर्म का ध्वज सदैव उसके आसपास लहरते रहता है . मैं यह नहीं समझ पा रहा हूँ कि इतने उत्कृष्ट युग को अधर्मी युग क्यों कहा जाता है ? आज धर्म के जितने ठेकेदार हैं उतने तो किसी युग में नहीं दिखाई दिए .सारा भारत धर्म ध्वज से सजा हुआ है . सबसे बड़ी बात यह कि हमारी सत्ता के हाथ में भी धर्म का ध्वज है .
यह अलग विषय है कि हम धर्मनिरपेक्ष हैं . शायद इसलिए हमारे हाथ में धर्म ध्वज है .यदि हम धर्म सापेक्ष होते तो सत्ता के हाथों धर्म का ध्वज नहीं होता . हमारी सियासत के हाथों में सभी धर्मों का ध्वज सजा हुआ है क्योंकि इन दोनों के पीछे वोट की भीड़ छिपी होती है . सियासत के हाथों बहुरंगी ध्वज चुनाव काल में अवश्य दिखाई देता है ; भले ही इसके पूर्व हम सर्व धर्म समभाव में आस्था रखते हैं .इससे बड़ी भारतीय उदारता और क्या हो सकती है हमारी सियासत के समक्ष गिरगिट लज्जित है . इसने भी उतने रंग नहीं बदले जितनी हमारी रियासत नें ! हमारी सियासत के समक्ष प्रकृति नत्-मस्तक है क्योंकि उसके तीन ही रंग हैं . वर्षा शीत और ग्रीष्म जबकि हमारी सियासती मौसमों का आकलन कर पाना असंभव है हमारी सियासत के भीतर धार्मिक सहिष्णुता कूट-कूट कर भरी है कहना वर्तमान परिपेक्ष में छोटा मुहावरा है .हमें कहना पड़ेगा कि हमारी सियासत के रग-रग में धार्मिक सहिष्णुता बहती है .
कट्टरता और सहिष्णुता सियासत क दोे मौसम हैं . चुनावी काल में सियासत का सहिष्णु होना आवश्यक हो जाता है . जब आप बाजार में होते हैं .जेब में चाहे कितना ही रूपया हो यदि आपके हाथ में थैला नहीं है तो आप के हाथ कुछ नहीं लगेगा . चुनाव यही बाजार हैं जबकि धार्मिक सहिष्णुता यही थैला है ; जिसमें सियासत वोट भरती है . वस्तुतः धर्म कामधेनु है !
#अशोक महिश्वरे
गुलवा बालाघाट म प्र
#परिचय
नाम -अशोक कुमार महिश्वरे
पिता स्वर्गीय श्री रामा जी महिश्वरे
माता स्वर्गीय शकुंतला देवी महिश्वरे
जन्म स्थान -ग्राम गुलवा पोस्ट बोरगांव, तहसील किरनापुर जिला बालाघाट मध्य प्रदेश
शिक्षा स्नातकोत्तर हिंदी साहित्य एवं अंग्रेजी साहित्य ,बीटीआई व्यवसाय :मध्यप्रदेश शासन स्कूल शिक्षा विभाग में सहायक अध्यापक के पद पर वर्तमान में शासकीय प्राथमिक शाला टेमनी तहसील लांजी जिला बालाघाट मध्य प्रदेश में पदस्थ हूँ
लेखन विधा गद्य एवं पद्य
प्रकाशित पुस्तकें: प्रकाश काधीन १/साझा काव्य संग्रह २/नारी काव्यसंग्रह
प्रकाशक साहित्य प्रकाशन झुंझुनू राजस्थान
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Mon Sep 24 , 2018
याद गुज़रे ज़माने आ गए क्या फिर यादों के बादल छा गए क्या ===================== अक्स मेरा उभरा जब यकायक आईना देखकर शरमा गए क्या ===================== महफिल छोड़के जाने लगे हो मेरे आने से तुम घबरा गए क्या ====================== बेरूखी बेसबब होती नहीं है मुहब्बत से मेरी उकता गए क्या ====================== […]