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सनम तेरी मुलाकातों का ये सिलसिला,
भुल कर भी सनम कभी भुला न पाया ।
भुल कर भी सनम कभी भुला न पाया ।
क्या कमी रह गई प्यार में ये दिलरुबा ,
सनम आज तक मैं खुद समझ न पाया।
आज तक ओ सनम तेरी यादों का,
सिल सिला बरकरार है।
न जाने कैसी सनम तेरी लगन का,
नशा ही नशा बेशुमार है।
मैं मोहब्बत में अकेला जलता रहा,
प्यार हाय प्यार बेसुमार करता रहा।
जालिमों की भीड़ में किसको मैंअपना कहुँ,
कोई न अपना यहाँ जिन्दगी को मैं क्या कहुँ।
# बिपिन कुमार मौर्या
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