भूलकर सारे गिले-शिकवे अपनों के,
एक-दूसरे को हम रंग लगाएंगे।
जिंदगी में भर दे खुशियाँ जो फिर से,
इस बार होली ऐसी मनाएंगे।
जो भी होगा रुठा मुझसे अभी तक,
जाकर घर स्वयं उसके हम मनाएंगे।
एकसाथ मिलेंगे हम सब फिर से,
बचपन वाली वो होली फिर से मनाएंगे।
बेरंग-सी लगने लगी है जिंदगी अपनों के बिना,
अब तो अपनों से दूर हरगिज हम न जाएंगे।
सदियों से बेरंग पड़े रिश्तों में,
इस बार रंग प्यार के घोल जाएंगे।
हंसी-ख़ुशी से अपनों के साथ अब,
पावन पुनीत पर्व होली हम मनाएंगे।
#एड. नवीन बिलैया
खूबसूरत रचना।
जय हो