बात सिर्फ एक महीने पहले की है,मेरे पति जिस कंपनी में कार्य करते थे उसी कंपनी द्वारा संचालित स्कूल में, मैं पढ़ाती थी। मेरे पति को दूसरी जगह से ऑफर मिला तो उन्होंने वहाँ त्यागपत्र दिया,पति के साथ मुझे भी अपनी नौकरी से त्यागपत्र देना पड़ा। तीन महीने के नोटिस पीरियड की समाप्ति पर ही मुझे रिलीव किया जाना था तो मैंने तीन महीने पूर्व त्यागपत्र दिया और स्कूल प्रशासन से अनुरोध किया कि वे इस बात को ज़ाहिर न करें,पर आग़ लगने पर शांति कैसे रहेगी,ये बात सबको पता चल ही गई।
मैं बोर्ड क्लास को पढ़ाती थी तो बच्चो से मैंने अनुरोध किया कि वो भी मेरा साथ दे सिलेबस पूरा करने में।
समझदार बच्चो की तरह बच्चो के सहयोग से मैंने अपना कार्य पूरा किया।
समय आगे जाता ही है,मेरे जाने की २७ तारीख भी आने लगी।विदाई समारोह मुझे और मेरे पति को मिलने लगे…
स्कूल की तरफ से भी मुझे भी विदाई मिली ,उस स्कूल का नियम था कि जाने वाले को परिवार सहित बुलाया जाता है,मेरे पति भी मेरे विदाई समारोह में आए।नियम के अनुसार कुछ कुछ लोग मेरे बारे में अच्छा अच्छा बोल रहे थे।फिर बच्चो की भीड़ में से एक हाथ उठा , वो हाथ था स्कूल के सबसे बिगड़े बच्चे का।उसे बोलने को बोला गया,वो माइक के पास आया। उसने अपने व्यवहार के अलग सबको नमन किया,और बात की शुरुवात मेरे पति को संबोधित करते हुए की।
“सर,आप इस दुनिया के सबसे बुरे इंसान हो,मुझे आपसे नफरत है।” सब हक्के बक्के रह गए,मुझे भी अजीब लगा।
उसकी बात सुनकर मेरे पति उसके पास गए उसका हाथ पकड़ कर बोले, “क्यों नफरत है तुम्हे मुझसे?”
उसका उत्तर चौंकाने वाला था…
“सर आप तो जा रहे हो पर जिस इंसान से मैं सबसे ज्यादा प्यार करता हूँ उसे भी आप अपने साथ ले जा रहे हो, अपनी माँ के जाने के बाद जिसमें मैंने माँ को पाया आज वो भी जा रही है”,ऐसा बोल कर वो फूट फूट कर रोने लगा ।सभागार में बैठे सभी लोगों की आंखे नम हो गई।मैंने तुरंत उसे गले लगा लिया,वो मुझसे लिपट कर ऐसे रोया जैसे कोई छोटा बच्चा रोता है।
अभी इस संस्मरण को लिखते समय मेरी आंखे फिर भीग गई।
#अनूपा हरबोला
विद्यानगर (कर्नाटक)