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हर मनुष्य को स्वदेश और स्वभाषा से प्रेम होना चाहिए। हिंदी की छोटी बहन उर्दू है। यह हमारी बोलचाल की भाषा में अच्छे से घुल मिल गई है। इस भाषा ने पूरे भारतवर्ष को एकता में पिरोया हुआ है। भारत के एक सिरे से दूसरे सिरे तक हिंदी भाषा कुछ न कुछ सर्वत्र समझी जाती है।
हिंदी में शिक्षित व्यक्ति के विचार परिपक्व होते हैं। मातृभाषा में बालक अल्पसमय में ही ज्ञान प्राप्त कर सकता है। विदेशी भाषा में शिक्षा होने के कारण बुद्धि भी विदेशी हो जाती है। आज लोग हिंदी बोलने वालों को या समझने वालों को हेय दृष्टि से देखते हैं। उन्हें यह नहीं पता कि,राष्ट्रीयता का भाषा और साहित्य के साथ बहुत घनिष्ठ और गहरा संबंध है।
हिंदी जैसी सरल और सौम्य भाषा दूसरी कोई नहीं है। राष्ट्रभाषा के सम्मान के बिना हमारी आजादी बेकार है। हिंदी भारतीय संस्कृति की आत्मा है। यह उस समुद्र के समान है,जिसमें अनेक नदियां (अनेक भाषाएं) मिलती हों।
भाषा का निर्माण बंद कमरों में नहीं, अपितु जन-जन की जिव्हा पर होता है। यह हमारे स्वाभिमान की वृत्ति को जागृत करती है। चाहे हम अन्य भाषाओं का भी सम्मान करें, किंतु हिंदी का अपमान हमें सहन नहीं करना चाहिए।
#पिंकी परुथी ‘अनामिका’
परिचय: पिंकी परुथी ‘अनामिका’ राजस्थान राज्य के शहर बारां में रहती हैं। आपने उज्जैन से इलेक्ट्रिकल में बी.ई.की शिक्षा ली है। ४७ वर्षीय श्रीमति परुथी का जन्म स्थान उज्जैन ही है। गृहिणी हैं और गीत,गज़ल,भक्ति गीत सहित कविता,छंद,बाल कविता आदि लिखती हैं। आपकी रचनाएँ बारां और भोपाल में अक्सर प्रकाशित होती रहती हैं। पिंकी परुथी ने १९९२ में विवाह के बाद दिल्ली में कुछ समय व्याख्याता के रुप में नौकरी भी की है। बचपन से ही कलात्मक रुचियां होने से कला,संगीत, नृत्य,नाटक तथा निबंध लेखन आदि स्पर्धाओं में भाग लेकर पुरस्कृत होती रही हैं। दोनों बच्चों के पढ़ाई के लिए बाहर जाने के बाद सालभर पहले एक मित्र के कहने पर लिखना शुरु किया था,जो जारी है। लगभग 100 से ज्यादा कविताएं लिखी हैं। आपकी रचनाओं में आध्यात्म,ईश्वर भक्ति,नारी शक्ति साहस,धनात्मक-दृष्टिकोण शामिल हैं। कभी-कभी आसपास के वातावरण, किसी की परेशानी,प्रकृति और त्योहारों को भी लेखनी से छूती हैं।
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