प्रिय बहिन,शुभाशीष।
तुम्हारे पत्र से समाचार जान कर प्रसन्न भी हूँ और अचम्भित भी।
तुम निज परिवार व परिजनों के साथ समायोजित और प्रसन्न हो,और होना भी तो चाहिए।
अचम्भित इसलिए हूँ कि इधर मेरे/हमारे परिवार ,परिजन, माता पिता बच्चा,बिटिया सभी का खयाल और चिंता रख पाती हो, *उन कुरजाँ पक्षियों की तरह जो सर्द ऋतु में ठण्डे प्रदेशों मे अपने अण्डे,देकर उन्हे वहीं छोड़ कर राजस्थान या अन्य गर्म इलाकोे में आते है और इतनी दूरी से ही अपने अण्डो को भावनात्मक व मानसिक रूप से सेहते हुए खयाल रखते है,लौटकर उन से बच्चे निकाल लेते है*।
संभव है यह कला बहिनों से ही इन कुरजाओं ने सीखी हो।
मेरी शादी पर हँसते हुए तुमने कहा था– *भैया- माँ के बाद और बेटी से पूर्व किसका अधिकार होता है?*
*तब मैने भी हँसते हुए कह दिया था कि- बहिन का।*
पर तुम्हारा यह *प्रश्न* मेरे लिए पहेली बना हुआ है कि ऐसा सटीक प्रश्न तुम्हे किस *पुस्तक,ग्रन्थ,वेद,शास्त्र, गुरु या विद्यालय से मिला था?*
मैं तो तुमसे ही सीखा हूँ ,
बहिना यही मंत्र है :- *बहिन भाई के पावन रिश्ते* के सफल निर्वाह का।
भाई को अपने कर्तव्य का ध्यान रहता है तो बहिन भी माँ और बेटी बनकर भी भाई का,उसके परिजनों का खयाल रख पाती है।
मैं अभिभूत हूँ बहिन तुम्हारे समायोजन से भी और द्विपक्षीय उत्तरदायित्व से भी।
छुटकी मेरा आत्मीय आशीष छायाँ बनकर तुम्हारी कीर्ति बढ़ाए।
*बहना सदा गंग यमुन सी*
*भारत की पावन धरती पर।*
*सबकी श्रद्धा हो तुम बहना*
*बनी अलौकिक जगती पर।*
बहन आज ही नहीं बल्कि नित नित ही आपके परिवार के लिए मंगलकामना करता रहूँ ऐसी शक्ति भगवान से चाहता हूँ। विवाहोपरांत आप , *आप* नही रही ,आप का स्वअस्तित्व नहीं रहा।आप तो अब दो परिवारों की सेतु हो।
*दो नावों की सफल सवारी*
*तभी पूज्या बहिन हमारी*
आपका अपना परिवार और आपके पीहर का परिवार। संतुलन आप ही बिठाती है। आप सारथी हो दो रथों की । श्रीकृष्ण ने तो एक ही अर्जुन का रथ हाँका था।
काश *श्रीकृष्ण आपसे सीख पाते बहिन,तो शायद ही महाभारत होता।*
खैर बहनों आप विधाता की अनुपम व अमूल्य कृति तो हो ही,महान *मातृशक्ति* अंश भी हो।
क्योंकि शकुनि व कंश जैसे भाई जिन्हौने बहनों के परिवार घात कर दिए थे उन्हे भी बहनो ने कभी बुरा नही कहा तो प्रहलाद की रक्षा मे स्वयं अग्निसात होते हुए भी तुमने गालियां व श्राप नहीं दिया। मातृभूमि की रक्षार्थ हुमायू को राखी भेजते समय तो कितनी विराट हो गई होगी बहना तुम?
*पति परिवार के लिए स्वयं का अस्तित्व खोकर बरगद के बीज की तरह गलकर वटवृक्ष बना देना, शायद प्रकृति ने तुम्ही से सीखा हो।*
बहना ससुराल ही तेरा घर है । किसने ,तुम्हे कब सिखाया, ? मै हैरान हूँ।तुम्हे पति परिवार के समस्त मालिकाना हक कब और कैसे मिले ? बिन मांगे, बिन हस्तांतरण ,मै अचम्भित हूँ। पर पीहर की चिंता ,भाइयों द्वारा कहीं तुम्हारे माँ,बापू आहत न हो ,तुम्हारे भाई भाभी अपनी औलाद से आहत न हो ये सारे चिंता भार कहाँ समेटे रख लेती हो बहना कितनी विशाल ह्रदया हो तुम ?
भाई तुम्हारा हित अहित देखे न देखे तुम अवश्य देखती हो। तभी तो पीहर की कमजोरी ससुराल मे जाहिर नहीं होने देती पर ससुराल के अभाव, अभियोग,शिकवा,शिकायत भी तो हमें कभी नहीं बताती , कहाँ से पाई यह पाचन शक्ति?
लोग तो कहते है स्त्रीयों से बात नही पचती, पर तुमने तो आजीवन बतंगड़ भी पचा लिए।
एक भाई के नाते मै दूर बैठा भी तुम्हे मंगलकामना भेजूँ तो– खुश हो जाती हो तुम । मै दूर रहते भी खुश रहूँ क्यो चाहती हो ऐसा ?
मैं सोच रहा हूं । शायद मै नजदीक रहता तो तुम आत्मनिर्भर न बन पाती।
मै सहायता करता तो तुम कमजोर पड़ जाती ,मै कभी उधारी देता तो तुम सम्पन्न न बन पाती । तुम संघर्ष न करती तो मजबूत न हो पाती जितनी आज तुम हो । तुम वो नहीं बन पाती जो आज हो ,ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ है : वरना शायद तुम्हारी अति निकटता मुझे भी लम्बी अवधि न सुहाती। और मेरी निकटता से तुम्हारा परिवार ,परिवार न होता।मेरी अधिक निकटता तुम्हारे परिजनो को शकुनि की याद दिला सकती थी ,। पर सीता ,राम के साथ वनकष्ट सहकर ही तो महान और दैवीय बन सकी ,अपने जनकपुर की सहायता के बिना । *हुमायू राखीलाज हित समय पर सहायता पहुँचा देता तो देश का इतिहास कुछ और होता ,यह सही है, परन्तु मेवाड़ का इतिहास इतना गौरव शाली नही होता जितना आज है* । तुमने देखा होगा महसूस भी किया होगा किसी भाई की निकटता व सहयोग से कोई घर आबाद हुआ क्या?
बहनो के दखल से कोई परिवार बर्बाद हुआ क्या?
मेरा दखल क्योकर उचित होता उस घर मे जो सिर्फ तुम्हारी कर्मभूमि और अमानत है। यह अधिकार तो सिर्फ तुम्हे ही ईश्वर ने दिया है कि तुम मेरे घर से विलग नही हुई पर यह *अधिकार तुम्हे तब मिला जब तुम तुम्हारे समस्त हक हकूक त्याग कर गई। है न विचित्र बात , त्याग भी दिया अपना सब कुछ ,फिर भी हम अपने हैआपके।*
बहनो के हाथों तिलक की ताकत महसूस करता है हर कोई भाई और भाई के हाथों *चीर* पहनने की सम्पन्नता *बहने* ही समझती है ।
है न अलौकिक सा सम्बंध।
बस यही बना रहे । हमारे महान देश की महान संस्कृति मे, परम्परा में *बहन भाई के ये पर्व भाईदूज, रक्षाबंधन आदि इस सम्बंध के गौरव ,कर्तव्यों व दायित्वों का भान कराते रहेे।*
बहने भाईयो के लिए वरदायी रहें ,भाई बहनो के लिए रक्षाकवच बने रहे ।
पर्व, त्यौहार मनते रहे ,मेरे प्यारे भारत में ।
धन्य हो तुम *बहना*
गंग यमुन सी *बहना*।
*तुम्हे एवं दुनिया की समस्त बहिनों के लिए मेरी असीम शुभमंगल कामनाएँ।*
सदा खुश रहना
मेरी लाडली बहिना
और हाँ ग्रीष्मावकाश है , बहनोई जी व बच्चो सहित आना ही है तुम्हे,ऐसा तुम्हारी भावज का आदेश भी है।
*सबको यथा योग्य कहना*।
*मेरी राजदुलारी सी बहना* ।
नाम– बाबू लाल शर्मा
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः