`महिला शक्ति का मान-सम्मान और उसकी प्रतिष्ठा की रक्षा करने के साथ उनकी भावनाओं का आदर करना ही सही मायने में महिला दिवस मनाने जैसा है`क्योंकि, भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। संस्कृत में एक श्लोक है-
`यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:` अर्थात्,जहां नारी की पूजा होती है,वहां देवता निवास करते हैं,किंतु वर्तमान में जो हालात दिखाई देते हैं,उसमें नारी का हर जगह अपमान हो रहा है। उसे `भोग की वस्तु` समझकर आदमी `अपने तरीके से` इस्तेमाल कर रहा है। यह बेहद ही चिंताजनक विषय है,लेकिन हमारी संस्कृति को बनाए रखने के लिए नारी का सम्मान कैसे होना चाहिए, इस पर विचार करना अति महत्वपूर्ण है। यही कहूँगा कि,
हम हर महिला,माता,बहन का सम्मान करें। अवहेलना से बचें, सम्मान को आगे रखें,आदर करके निरादर से बचेंl। भ्रूण हत्या और नारी की अहमियत न समझने के परिणाम स्वरूप ही महिलाओं की संख्या,पुरुषों के मुकाबले तेजी से घटी है। इंसान को यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि,नारी द्वारा जन्म दिए जाने पर ही वह दुनिया में अपना अस्तित्व बना पाया है और यहां तक पहुंचा है। उसे ठुकराना या अपमान करना कतई सही नहीं है। भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी,लक्ष्मी,दुर्गा व सरस्वती आदि का सम्मान दिया गया है,अत: आदमी द्वारा भी उसे उचित सम्मान दिया ही जाना चाहिए।
#माता का सम्मान हो
`मां` अर्थात माता के रूप में नारी,हमारी संस्कृति व धरती पर अपने सबसे पवित्र रूप में माँ ही है। माता यानी जननी माँ को ईश्वर से भी बढ़कर माना गया है,क्योंकि ईश्वर की जन्मदायिनी भी नारी ही रही है,लेकिन कलयुग कहें या इस बदलते समय में नवयुवकों (संतानों) ने अपनी मां को ही महत्व देना कम कर दिया है,जो चिंताजनक है। सब धन-मोह माया में अपना स्वार्थ तलाश रहे हैं,लेकिन जन्म देने वाली माँ के रूप में नारी का सम्मान उचित तरीके से नहीं कर रहे हैं।
#हर क्षेत्र में लड़कियां अव्वल
अगर बदलती सोच व नारी की काबिलियत पर नजर डालें तो हम देखते हैं कि,आज के दौर की बालिकाएं हर क्षेत्र में बाजी मार रही हैं। कई परीक्षाओं की प्रावीण्य सूची में लड़कियां तेजी से आगे हो रही हैं। किसी समय इन्हें कमजोर समझा जाता था,किंतु इन्होंने अपनी मेहनत और मेधावी शक्ति (शक्ति का एक रूप दुर्गा) के बल पर हर क्षेत्र में प्रवीणता अर्जित कर ली है। इनकी इस प्रतिभा का सम्मान किया जाना और होते रहना चाहिए।
#कंधे से कंधा मिलाकर चल रही
नारी का सारा जीवन पुरुष के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर चलने में ही बीत जाता है। पहले पिता की ममता की छाया में उसका बचपन बीतता है,लेकिन पिता के घर में भी उसे सारा कामकाज करना होता है। वजह कि,ससुराल में काम आएगाllll। इसके अलावा अपनी पढ़ाई भी पर भी ध्यान देना होता है,वजह नौकरी होगी,अच्छा घर मिलेगा,जो क्रम विवाह तक जारी रहता है। उसे इस दौरान दोहरी-तिहरी जिम्मेदारी निभानी होती है,जबकि इस समय लड़कों को पढ़ाई-लिखाई के अलावा और कोई काम नहीं रहता है। कुछ नवुयवक तो ठीक से पढ़ाई भी नहीं करते हैं,जबकि उन्हें इसके अलावा और कोई काम ही नहीं रहता है। इस नजरिए से देखा जाए,तो नारी सदैव पुरुष के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर चलती ही नहीं रही है,बल्कि उनसे भी अधिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करती है। तब भी कभी गिनवाती नहीं है।l नारी इस तरह से भी सम्माननीय है।
#विवाह के पूर्व व पश्चात
जैसे पूर्व में यह अपना दायित्व पिता के यंहा निभाती है,वैसे ही विवाह के पश्चात तो महिलाओं पर और भी बड़ी जिम्मेदारियां आ जाती है। पति,सास-ससुर,देवर-ननद की सेवा के बाद उनके पास अपने लिए समय ही नहीं बचता है । वे कोल्हू के बैल की भांति घर-परिवार में ही व्यस्त रहती हैं। तत्पश्चात संतान के जन्म के बाद उनकी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। घर-परिवार,चौका-चूल्हा देखने में ही एक आम महिला का जीवन कब बीत जाता है,उसे पता ही नहीं चलता है। कई बार तो ममतामयी घर-परिवार की खातिर अपने अरमानों का भी गला घोंट देती हैं। उन्हें इतना समय भी नहीं मिल पाता है कि,वह अपने लिए भी कुछ पल सुकून का जिएं। परिवार की खातिर अपना जीवन हवन की आहुति यों को समर्पित करने में ही बिता देती हैll। भारतीय महिलाएं इसमें भी सबसे आगे हैं। परिवार के प्रति उनका यह त्याग उन्हें सम्मान का अधिकारी बनाता ही है।
#बच्चों में संस्कार डालना भी जिम्मेदारी
बच्चों में संस्कार भरने का काम भी मां के रूप में नारी द्वारा ही किया जाता है। यह तो हम सभी बचपन से सुनते चले आ रहे हैं कि,बच्चों की प्रथम पाठशाला व गुरु माँ ही होती है। माँ के व्यक्तित्व-कृतित्व का बच्चों पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार का असर पड़ता है। अगर आज का नौजवान इतिहास उठाकर देखे तो,मां पुतलीबाई ने गांधीजी व जीजाबाई ने शिवाजी महाराज में श्रेष्ठ संस्कारों का बीजारोपण किया था। इसका ही परिणाम है कि,शिवाजी महाराज व गांधीजी को हम आज भी उनके श्रेष्ठ कर्मों की वजह से जानते हैं। इनका व्यक्तित्व विराट व अनुपम है। बेहतर संस्कार देकर बच्चे को समाज में उदाहरण बनाना,नारी ही कर सकती है।
#अभद्रता की पराकाष्ठा
आजकल महिलाओं के साथ अभद्रता की पराकाष्ठा हो रही है। हम रोज ही अखबारों और न्यूज चैनलों में पढ़ते,सुनते व देखते हैं,कि महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की गई या सामूहिक बलात्कार किया गया। इसे नैतिक पतन ही कहा जाएगा। शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता होगा,जब महिलाओं के साथ की गई अभद्रता पर समाचार न हो।
अंत में यही लिखूंगा कि,
हम हर महिला, माता, बहन, का सम्मान करें। अवहेलना से बचे सम्मान को आगे रखे आदर करे निरादर से बचे भ्रूण हत्या और नारी की अहमियत न समझने के परिणाम स्वरूप महिलाओं की संख्या, पुरुषों के मुकाबले आधी भी नहीं बची है। इंसान को यह कभी नहीं भूलना चाहिए, कि नारी द्वारा जन्म दिए जाने पर ही वह दुनिया में अपना अस्तित्व बना पाया है और यहां तक पहुंचा है। उसे ठुकराना या अपमान करना कतई स्तय नहीं है। भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी,लक्ष्मी, दुर्गा व श्रस्वती आदि का सम्मान दिया गया है अत: उसे उचित सम्मान दिया ही जाना चाहिए।