बाक़ी है

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pramod kumar

बहुत जखम  सह लिए मगर निशान अब भी बाक़ी है,

लाख दिए हैं इम्तहान  पर अंजाम अब भी बाक़ी है.

गिराते रहे तुम सितम की बिजलियाँ  हर  मोड़ पर,

मगर इस सफ़र की मंजिल अब भी बाकी हैं.

रूहों को मिलाने की करते रहे  नाकाम कोशिश,

फरेबी चेहरो पर झूठ के नकाब अब भी बाक़ी है.

बेसक खाई हो कसमे मुहबत में मुकाम तक जाने की,

मगर आवाज़ में दरारें अब भी बाकी हैं.

तोड़ दिए रिश्ता तुमने पाक दिलों का,

मगर “हर्ष” इन आंखों में इंतज़ार अब भी बाक़ी है.

#प्रमोद कुमार “हर्ष”

matruadmin

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