मकान

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akansha
        राजीव अपने मज़दूर पिता की उस बात को कभी नही भूलना चाहता जो अक्सर कहा करते थे “महत्वाकांक्षी होने में कोई बुराई नही,ग़लत यह है कि इंसान अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए शार्ट कट रास्ता अपना ले या खुद को ग़लत इरादों,रास्तों पर ढ़केल दे”।
      शायद यही वह कारण था कि राजीव को अपनी  दयनीय हालात से कभी कोई शिकायत न रही हाँ उसकी एक बड़ी इच्छा ज़रूर थी कि जब भी कभी मौक़ा मिला वह अपने साथ साथ अपने बाबू जी को किराए के मकान में रहने के अभिशाप से ज़रूर मुक्त करा देगा।
       रोमा सिंह राजीव की महिला मित्र थी।दोनों एक दूसरे को हमसफर बनाने की इच्छा भी रखते थे किंतु “हालात” यह कि उनके इस इच्छा के बीच दीवार बने खड़े थे।
           रोमा जब भी शादी की बात छेड़ती राजीव यही कहता, रोमा अगर तुम्हें जल्दी है तो कहीं किसी और से शादी कर लो।रही मेरी बात तो जब तक मैं अपने साथ – साथ अपने बाबू जी को किराए के मकान में रहने के अभिशाप से मुक्त नही करवा लेता तब तक मैं अपनी शादी के बारे में,मैं सोच भी नही सकता।
      रोमा,राजीव के जज़्बात की क़दर करती थी लेकिन वो अपने माता पिता को कैसे समझाती जो अक्सर कहा करते थे कि राजीव के  सपने पूरे होने तक न हम तुम्हें अब खुल कर उस से मिलने – जुलने की इजाज़त दे सकते और और न ही समाज की नज़रों में खुद को सवाल बनाना चाहते हैं।
    रोमा ने एक दिन राजीव को संजीदगी से समझाते हुए कहा कि राजीव अव्वल तो मैं तुम्हें खोना नही चाहती दूसरी यह कि मैं अपने माता पिता को समाज की नज़रों में सवाल भी बनाना नही चाहती।इस लिए मेरी मानो तो हम पहले शादी कर लें और फिर जिस सपने को साकार करने के लिए तुम जो तन्हा जूझ रहे हो  उस सपने को साकार करने के लिए हम दोनों मिलजुल कर संघर्ष करेंगे वरना कहीं देर न हो जाए।
       राजीव रोमा की राय सुन कर असमंजस में पड़ गया।कुछ देर सोचने के बाद उसने रोमा से कहा कि खोना तो मैं भी तुम्हें नहीं चाहता और न ही कभी चाहूंगा कि मेरे कारण तुम्हारे माता पिता समाज की नज़रों में सवाल बन जाएं और चाहता यह भी नहीं कि मैं तुम्हें ब्याह कर किसी किराए के मकान में ले जाऊँ और तुम्हें भी मेरी माँ की तरह किराए के मकान में रहने का अभिशाप झेलना पड़े।रोमा शायद तुम नहीं जानती किसी किराए के मकान में रहने की दैनिक कठिनाइयां,अभिशाप।
     रोमा वह तो मेरी माँ थी जो उम्र भर हालात का रोना तो नही रोइ लेकिन शादी के बाद से ही किराए का मकान ढूंढने और बदलने में अपनी बाकी ज़िन्दग़ी गुज़ार दी यहां तक कि किराए के मकान में ही आख़िरी सांस लीं।मैं नहीं चाहता रोमा कि जो जीवन बाबू जी ने माँ को दिया वही जीवन मैं तुम्हे दूं।और चाहता यह भी नहीं कि बाबू जी की अर्थी भी माँ की तरह किसी किराए के मकान से ही उठे।इसलिए माफ करना रोमा  मैं और कुछ दूर तुम्हारा साथ नहीं दे पाऊंगा।
     रोमा को राजीव का फैसला सुन कर दुख नही हुआ लेकिन एक बार फिर वह यह कह कर राजीव के फैसले को बदलने की कोशिश करने लगी कि, राजीव किसी समस्या का समाधान जुदाई नहीं बल्कि आपस की समझदारी है।मेरी मानो तो जिस अभिशाप से मुक्ति के लिए तुम तन्हा लड़ रहे हो उस अभिशाप से मुक्ति के लिए हम दोनों मिल कर लड़ेंगे तो जिस सपने को साकार करने में एक लंबा समय लग रहा है वह सपना कम दिनों में ही पूरा हो सकता है वरना एक बार फिर वही कि कहीं देर न हो जाए।
   राजीव ने रोमा की राय को इस बार काफी संजीदगी से लिया और फिर दोनों ने आनन – फानन में शादी कर ली।शादी क्या हुई रोमा साल भर बाद एक बच्ची की माँ बन गई।दादा जी ने रोमा की उस प्यारी सी बच्ची का नाम लक्ष्मी रख दिया जो राजीव को बहरहाल अच्छा नहीं लगा लेकिन……!!
       एक दिन बातों – बातों में रोमा ने राजीव से कहा,राजीव अब वह समय आ चुका है जब मुझे भी किसी जॉब से लग जाना चाहिए ताकि हम समय रहते अपने सपने को साकार कर सकें।
    राजीव ने पूछा कौन सा जॉब करना चाहती हो?
    रोमा ने बताया अपने पड़ोस की कंचन मैडम एक अंग्रेजी स्कूल में टीचर हैं।उनका कहना है कि अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें भी उस स्कूल में एडजस्ट करवा सकती हूँ।
      राजीव ने कहा रोमा टीचिंग जॉब गलत तो नहीं लेकिन खास कर के प्राइवेट अंग्रेज़ी स्कूलों में और विशेष कर महिला टीचरों के साथ  मैनेजमेंट द्वारा शोषण का जो रवैया अपनाया जाता है वह भी अपनी जगह सच और सही है।बहरहाल अगर तुम उस शोषण से खुद को बचा सकती हो तो मुझे कोई एतराज नहीं।
      राजीव की इजाज़त और कंचन मैडम के सहयोग से रोमा ने क़ुईन्स कान्वेंट स्कूल जॉइन कर लिया।इस शर्त के साथ के वह हालात के तहत किसी भी समय  स्कूल छोड़ कर जा भी सकती है।
       रोमा को स्कूल जॉइन किये अभी चंद महीने ही गुज़रे थे कि स्कूल का प्रबंधक उसे अपने क़रीब करने के हथकंडे आज़माने लगा किंतु इस से पहले कि वह अपने मकसद में सफल हो पाता रोमा ने स्कूल छोड़ दिया और फिर जब किराए के मकान की तरह स्कूल बदलते- बदलते थक गई तो आराम के बहाने घर बैठ गई।
      एक दिन एक मुलाक़ात के दौरान कंचन ने रोमा से कहा,आज के कमर्शियल  दौर में खुद को कहीं एडजस्ट करने के लिए विशेष कर एक महिला को किसी न किसी तरह की कुर्बानी देनी ही पड़ती  है या फिर नीच ऊंच हालात से समझौता करना ही पड़ता है।जानती हो शुरू – शुरू में मुझे भी कई स्कूल बदलने पड़े और केवल इस लिए कि मैं अपने घर परिवार को सामने रख कर हालात से समझौता नहीं करना चाहती थी पर जब मुझे एहसास हुआ कि पैसे कमाने के लिए अगर मुझे किसी को खुश ही करना ज़रूरी है तो क्यों न  उन ऐसों को खुश करना शुरू करूँ जिन से अपना ज़मीर अपने जिस्म की पूरी कीमत वसूल कर सकूँ।
  नतीजतन मैंने स्कूल के बहाने “फ्रेंड्स क्लब” जॉइन कर लिया और अब तुम देख ही रही हो कि आज क्या नही है मेरे पास,और यह सब फ्रेंड्स क्लब की देन है वरना मेरे पति की छोटी कमाई से यह रईसी कहाँ संभव  थी।
    रोमा ने पूछा ,यह फ्रेंड्स क्लब है क्या?
    पैसा पैदा करने की मशीन,कंचन ने बताया।
    मतलब?रोमा ने पूछा।
    कंचन ने बताया,फ्रेंड्स क्लब जॉइन करने का मतलब डेटिंग है और डेटिंग का मतलब “सेफ सेक्स”। मतलब यह कि किसी को कानों कान खबर भी न हो और क़ीमत पूरी वसूल।जानती हो इस पेशे से न केवल हम जैसी मजबूर महिलाएं जुड़ी हैं बल्कि अच्छे -अच्छे घरानों की रईस जादियाँ भी जुड़ कर दौलत पीट रही हैं।
   रोमा कंचन का इशारा समझ गई लेकिन हाँ या ना, कोई उत्तर दिए बग़ैर अपने घर लौट गई और फिर कई दिनों तक निगेटिव पॉजिटिव सोच से लड़ती एक दिन अचानक कंचन के घर पहुंच गई और फ्रेंड्स क्लब जॉइन करने की स्वीकृति दे दी।
    कंचन ने दूसरे ही दिन रोमा को ले जा कर फ्रेंड्स क्लब जॉइन करवा दिया। फ्रेंड्स क्लब के संचालक ने पेशगी के तौर पर रोमा को 5000 रुपये और एक मल्टीमीडिया सेट मोबाइल के साथ – साथ एक नया नाम “लैला” दे कर यह कहते हुए वापस भेज दिया कि प्रार्थना करो कि तुम्हें जल्द ही किसी कस्टमर से डेटिंग कॉल प्राप्त हो जाए।
    रोमा को अभी फ्रेंड्स क्लब जॉइन किए मात्र 10 दिन ही गुज़रे थे कि उसे एक कस्टमर का डेटिंग कॉल प्राप्त हो गया जिसने बग़ैर किसी हिचकिचाहट के उसे होटल ताज के कमरा नंबर 111 में समय अनुसार पहुंचने को कहा।रोमा ने इसकी सूचना कंचन को दी तो कंचन ने बताया,तुम लकी हो जो जिसे चंद दिनों में ही कस्टमर कॉल प्राप्त हो गया वरना कई एक को तो महीनों हो जाते कॉल प्राप्त नही होते।बहरहाल आज तुम्हारा पहला दिन है इस लिए चलो आज होटल के दरवाज़े तक मैं तुम्हें कंपनी दे दूं।
   रोमा इस से पहले कि कोई संकोच जताती कंचन ने कहा,रोमा इस में संकोच की कोई गुंजाइश नही कि इस पेशे  से अच्छे – अच्छे घरों की राईसज़ादियाँ,हाउस वाइफ भी जुड़ी हैं और कच्चा सौदा कर अच्छी कमाई कर रही हैं।
    रोमा थके क़दमों से कंचन के साथ कस्टमर अटेंड करने के लिए रवाना हो गई।जहां उसने भारी मन से कस्टमर अटेंड किया और केवल 2 घंटे में हज़ार रुपये का एक नोट अपने पर्स में रख कर लौट गई।
   दूसरे दिन कंचन रोमा से मिली और एक हज़ार रुपए  देते हुए बोली कि लो यह रखो कस्टमर फ़ीस जिसे बॉस ने भेजवाया है।
    रोमा ने बताया पैसे तो मुझे वहीं कस्टमर ने दे दिए थे। कंचन ने बताया वह तो तुम्हे टिप्स में मिले होंगे यह तुम्हारी फीस की रकम है।दरअसल बॉस जितने में सौदा करते हैं उसकी आधी रक़म अटेंडेंट को ईमानदारी से दे देते हैं।
     कंचन फीस दे कर लौट गई तो रोमा सोचने पर मजबूर हुई कि जहां दो घंटे में दो हज़ार कम नहीं वहीं अब शायद राजीव के सपने को साकार करने में देर न लगे।
  शुरू शुरू  में रोमा महीने में मात्र दो चार ही कॉल अटेंड करती पर पैसे का चस्का लगा तो चार से आठ,आठ से बारह कॉल स्वीकार करने लगी यह सोच कर कि उसके पास समय कम है काम ज़्यादा।
   एक दिन बातों – बातों में रोमा ने राजीव को बताया कि वह जिस दफ्तर में पार्ट टाइम जॉब कर रही है वो दफ्तर वाले काफी अच्छे लोग हैं।वो मुझे हाउस लोन देने के लिए भी तैयार हैं इसलिए मुमकिन है अब हमारा सपना जल्द ही साकार हो जाए।
    अभी चंद महीने ही गुज़रे थे कि अचानक एक दिन रोमा ने पूरी एक फ़्लैट की क़ीमत राजीव के सामने ला कर रख दी और कहा,राजीव कल ही जाकर गंगा नगर कॉलोनी में एक फ़्लैट बुक कर वा लो ताकि जितना जल्द हो सके  हम किराए के मकान में रहने के अभिशाप से मुक्ति पा सकें वरना कहीं देर न हो जाए।
   राजीव ने दूसरे ही दिन नगर निगम के अधिकारी से मिल कर पूरी कीमत जमा कर के फ्लैट अपने नाम बुक करवा लिया।अब बात किराए के मकान से मुक्ति पा कर नए फ्लैट में शिफ्ट करने की आई तो राजीव ने पंडित जी से मिलकर गृहप्रवेश की मुहूर्त चाही तो पंडित जी ने  अगले सप्ताह किसी भी दिन गृहप्रवेश की आज्ञा दी।
    राजीव और रोमा नए घर में शिफ्ट करने की तैयारियों में जुट गए। लेकिन..बदकिस्मती कहाँ पीछा छोड़ती है।इस से पहले कि वो अपने नए घर में शिफ्ट होते एक रात बाबू जी सोए तो फिर जागे ही नहीं।
      बाबू जी की मौत ने राजीव और रोमा को अंदर तक झिझोंड़ दिया।रोमा जहां यह सोचने पर मजबूर हुई कि वो खुद को बेच कर भी बाबू जी को किराए के मकान में ही मरने से नहीं बचा सकी। वहीं राजीव यह सोच कर दुखी था कि वह रोमा के सहयोग के बावजूद भी ज़िन्दगी की जीती बाज़ी हार गया।
    रोमा ने भारी मन से कहा,राजीव अब मुहूर्त की छोड़ो,ले चलो अभी इसी समय बाबू जी की मय्यत अपने उस नए घर में ताकि बाबू जी की अर्थी तो कम से कम अपने घर से उठ सके।
     राजीव बाबू जी की मय्यत अपने घर में उठा लाया और अर्थी अपने नए घर से उठा कर श्मशानघाट की ओर लिए चल पड़ा जहाँ अपने हाथों बाबू जी की चिता का अंतिम संस्कार किया।
     श्मशानघाट से वापसी पर राजीव जहां एक कोने में सिमटा घंटों अपनी बदकिस्मती पर आंसू बहाता रहा। वहीं रोमा सर झुकाए अपनी ही अदालत में मुजरिम बनी अपने हाल,माज़ी और मुस्तक़बिल  को तलाशती रही।
    समय दुख भी है सुख भी,दवा भी है दुआ भी,ज़ख्म भी है मरहम भी…धीरे – धीरे राजीव और रोमा नार्मल ज़िन्दगी में लौट आए।चंद महीने बाद रोमा राजीव से यह कह कर घर बैठ गई कि चूंकि हाउस लोन की रक़म अदा हो चुकी है लिहाज़ा अब वह घर पर आराम करना चाहती है।
   रोमा के घर बैठ जाने पर  राजीव अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए और अधिक मेहनत,डबल शिफ्ट में काम करने लगा कि अब उसे ज़िन्दगी की दूसरी जंग में फ़तह पाकर अपनी बेटी लक्ष्मी को एक ख़ुशगवार(सुहावना) ज़िन्दगी देने की थी।
     एक दिन अचानक बातों- बातों में लक्ष्मी ने जब माँ से पूछा कि, माँ क्या तुम्हें नहीं लगता कि पापा समय से पहले बूढ़े दिखने लगे हैं?
     रोमा ने कहा,हाँ यह सच है और इसका मुख्य कारण केवल तुम हो…मतलब उन्हें हर समय तुम्हारी बेहतर पढ़ाई लिखाई और सब से बड़ी बात तुम्हारी आने वाले दिनों में शादी की चिंता सताए रहती है कि अपनी छोटी आमदनी के सहारे तुम्हारे हाथ कैसे पीले कर पाएंगे।
      लक्ष्मी माँ की बात सुन कर मुस्कुराती बोल पड़ी, “माँ जब तुम फ्रेंड्स क्लब जॉइन कर के एक फ्लैट खरीद सकती हो तो क्या मैं फ्रेंड्स क्लब जॉइन कर के एक अदद अपने लिए पति नहीं खरीद सकती “।
    लक्ष्मी का कमेंट सुन कर रोमा सन्नाटे में आ गई, उसे लगा जैसे किसी ने उसके मुंह में हाथ डाल कर कलेजा निकाल लिया हो।

#आकांक्षा सक्सेना

जन्म- मथुरा उत्तर प्रदेश 
शिक्षा:  बी.एस.सी,एम. ए, एम.एड, 
लेखन  – कहानियाँ, पटकथा,कविताएँ, गीत,भजन, लेख,श्लोगन, संस्मरण। 
फिल्म – रक्तदान पर आधारित रक्तप्रदाता और खाने की बर्बादी के रोकने पर आधारित फिल्म 
ए सोयल दैट बीट्स में बतौर एसोसिएट डॉयरेक्टर कार्य। 
सोसलवर्क – अखिल भारतीय कायस्थ महासभा की युवा सचिव बनी तथा कायस्थवाहिनी अंतर्राष्ट्रीय सामााजिक संगठन में सचिव(युवा महिला प्रकोष्ठ) बनकर कायस्थ समाज के लिये वर्क किया। इसके अतिरिक्त सर्व समाजहित के लिये कई मुहिम चलाई काम किये जैसै- एक लिफाफा मदद वाला, पॉलीथिन हटाओ कागज उढ़ाओ, अखबार ढाकें, कीटाणु भागें, सेवा व परोपकार भरी मुहिम घर से निकलो खुशियां बाटों व घुमन्तु जाति के गरीब बच्चियों के परिवार को समझाकर उनका स्कूल में दाखिला कराना जैसे सेवा कर्तव्य शामिल हैं।
प्रकाशित: लेख,कविता,शोधपत्र एवं कहानियां भारत के कई नामचीन समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित।
पुरस्कार सम्मान -आर्ट एण्ड क्राफ्ट, पिडिलाईट कलाकृति कॉन्टेस्ट की विनर, गायत्री महायज्ञ हरिद्वार की संस्कार परीक्षा प्रमाणपत्र,गोलिया आयुर्वेदिक प्राकृतिक चिकित्सा प्रमाणपत्र,दिल्ली योग प्राणायाम अणुव्रत जैनमुनि केन्द्र से योग सिविर अटेण्ड, प्रेरणा एनजीओ झारखण्ड़, अखिल नागरिक हक परिषद मुम्बई एनजीओ सपोर्ट प्रमाणपत्र, साहित्य परिषद द्वारा काव्य श्री सम्मान, अर्णव कलश साहित्य परिषद हरियाणा द्वारा बाबू बाल मुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान-2017 तथा साहित्य के चमकते दीप साहित्य सम्मान। बाबा मस्तनाथ अस्थल बोहर अर्णव कलश एसोसिएशन अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में शोध प्रमाण पत्र।
संप्रति- स्वतंत्र ऑनलाइन ब्लॉगर, 
 समाचार संपादक राष्ट्रीय पत्रिका सच की दस्तक। 

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।