पुरुष -वक़्त के साथ बड़े नही होते 

0 0
Read Time2 Minute, 37 Second

cropped-cropped-finaltry002-1.png
आज कि कविता एक नितान्त भाव है. जहाँ मैं पुरुष समाज की मांसिक स्तिथि को समझने की कोसिस कर रही हूं.
कल मेरा सात साल का बेटा मुझसे पूछ बैठा, माँ तुम सबसे ज्यादा प्यारी किसे करती हो, उस वक़्त मै वात्सल्य मे डूबी असीम आनंद से सरोबार थी.
मैने सहज ही कह दिया तुमसे और तुम्हारे dady से. पर बेटे को ये उत्तर स्वीकार न था, उसका हठ था की जैसे वो सबसे ज्यादा प्यार अपनी माँ से करता है वैसे ही मुझे सबसे ज्यादा प्यार अपनी माँ अर्थात उसकी नानी से करना चाहिए. मै उसकी बाल चपलता और तर्क के आगे नतमस्तक हो गयी.
पर अगली रात जब उसके dady घर पर थे उसने यही प्रश्न अप्ने dady पर दाग दिया. dady आप सबसे ज्यादा प्यार किसे करते हैं. उसके dady ने सहज ही कह दिया कि मै सबसे ज्यादा प्यार अपने mummy dady अर्थात तुम्हारे dada dadi से करता हूं. मेरे बेटे को इस जवाब से बहुत आघात पहुंचा, उसकी अपेक्षा थी की dady कहेन्गे तुमको और तुम्हारी mummy को. उसे ये उपेक्षा स्वीकार न हुई, उसने हमारे हक मे अपने dady से बहस की
हमने उसे शान्त किया, उसे समझाया और उसे सुलाया. पर ये वाक्या मेरे जहन से न हटा, पत्नि हूं शायद उपेक्षा स्वीकार न कर पाई, मै मंथन कर रही थी, मै निरन्तर चिन्तन कर रही थी.
सहसा मुझे समझ आया कि हम स्त्रिया अपना मायका पीछे छोड़ कर आते हैं और नए लोगों को पूरे दिल से अपना लेते हैं पूर्ण समर्पण के भाव से.
पर पुरुष वही खड़े रहते हैं, वो वक़्त के साथ बड़े नही होते हैं हम अपनी जडे छोड़ कर आते हैं, पुराने रिस्ते तोड़ कर आते हैं. हम नया पेड़ लगाते हैं. जहाँ हम स्व्यम जड हैं. हमारा अपना तना है. हमारी अपनी पत्तियाँ हैं. हमारे फ़ल हैं. हमारे फ़ूल हैं. और हम स्व्यम अद्र्स्य हो जाते हैं उस पेड़ को पानी देते देते.
पर पुरुष वही खड़े होते हैं और वो वक़्त के साथ बड़े नही होते हैं.

                          #श्वेता जायसवाल  ‘सुरभि’

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

मोहब्बत......

Wed Jul 11 , 2018
महंगी पड़ गयी तुम्हारी मोहब्बत हमें   कुछ लिया भी नहीं और सब कुछ दे दिया     वैसे इतना भी बुरा नही था ये सौदा   हमको भी तो मिला रात भर आँख खुली रखने का काम   आँख मिच के भी ना सोने का काम   बिना तुम्हारी […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।