एक गजल

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punam gujrani
कभी चांदी कभी सोना कभी मोती दिखाती है
ये दुनिया है हमारी मुफलिसी को आजमाती है।
कभी पीली, कभी नीली, कभी काली हुई औरत
मगर वो खिलखिलाने का सदा जोखिम उठाती है।
रुलाती है ,हंसाती है, बाताती है कई किस्से
किताबों की अलग दुनिया सखी सबको लुभाती है।
कभी जोङे ,कभी तोङे,कभी फैके खिलौनों को
उठा लेती है इक लङकी हां. अपना घर बनाती है।
छलक पाते नहीं अम्मा की आंखों से कभी आंसू
सदा अरमान की खूंटी पे अपने गम सुखाती है।
मुहाने काल बैठा है मगर अहसास है किसको
जुगत रोटी की करने जिन्दगी ऐसा भगाती है।
कपट ,छल ,मोह ,मायासे विलग बच्चों की दुनिया है
तभी तो देख ले ‘पूनम’ खुदी भी सर झुकाती है।
डॉ पूनम गुजरानी
सूरत(गुजरात)
पीएचडी एम ए
काव्य संग्रह प्रकाशित
मझधार
समय क्षण भर रूक गया 
कई सम्मान. पुरस्कार प्राप्त
मोटीवेशन कार्यक्रम
कवि सम्मेलनो में सहभागिता

matruadmin

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