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गर जीवन में आज छाई है बहार,
तो पिता ही है इस मूल का आधार.
उंगली पकड़ चलना है सिखाया,
पर कंभी न छोड़ा हमें बीच मझधार.
माँ सुनाए लोरी रात लाख मगर,
तर्ज पर पिता का भी है अधिकार.
ज्ञान अक्षरों का हमें कराया,
कभी न जताया इसका आभार.
खुद के सपनो को जिसने भूलाया
हम आगे बड़े बनाए नया संसार
माँ की महिमा है जग में ऊँचा स्थान
पर शायद पिता के त्याग को दिया है बिसार
आओ सब मिल बैठ करे विचार,
“हर्ष” कैसे उतारे पिता का उपकार.
#प्रमोद कुमार “हर्ष”
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