#गणतंत्र औजस्वी, आगरा
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चुपचाप ! चुपचाप !
बिना आहट के सजाते जीवन
महकाते घर की बगिया..
मन-उपवन !
बचपने में हम..
थामकर उंगलियाँ..
चलते, गिरते, उठते
सीखते बोलियाँ,
कितने शान्त रह जाते
आप..
चुपचाप ! चुपचाप !
गूँजती किलकारियाँ
सुनकर हँसते..
खुश होते.. आँसू भरकर
जीवन का पाठ
गोदी में ले..
समझाते, पढ़ाते
नहीं पड़ने देते कमजोर.
सम्हालते हैं आप !
चुपचाप ! चुपचाप !
दुनिया पूजती माँ. को.
करती यशगान !
पर, आपका कितना
उपकार.. बिना शर्त
कितना महान !
पिता का होना ही.
आधी परेशानियाँ..
कर देता है खत्म,
आपके अस्तित्व से
कहलाते हैं हम !
बनायें हम अपनी पहिचान !
देते हमें..नाम..
वापस नहीं लेते..
और न करते पश्चाताप !
क्योंकि हमारे अस्तित्व होते हैं
आप..
चुप चाप ! चुपचाप !
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