उछालता है हर रोज कीचड़ मुझ पर, पर वो ये नहीं जानता कि कीचड़ में ही अक्सर उगा करते हैं कमल। शब्दों के बाण चलाता है मुझ पर, पर वो ये नहीं जानता कि गुस्से पर डाल दिया है मैंने शीतल जल। भरम में है वो कि राह अकेली हूं […]
sush
बहुत-सी बातें कहती दिनभर, फिर भी अनकही सी रह जाती.. गृहस्थी की चिंगारियों को अपने आंचल से ढँककर छुपाती, खुद अस्त-व्यस्त होकर भी.. सबकी जिंदगी मे रंग भरती.. अंदर-ही-अंदर धधकती, मुंह पर झूठी मुस्कान बिखेरती.. ये सुप्त ज्वालामुखी-सी औरतें….। लीपे-पुते चेहरे से झाँकती, उदासी की लकीरें दबा नहीं पाती.. प्याले […]