आज फिर रात से,उधार सुकून के लम्हे मांगते हैं… चलो, आज फिर मुक़द्दर सुधारते हैं। कुछ टूटे ख्वाब,कुछ बीमार-सी ये ज़िन्दगी जो है, उम्मीदों के धागे से टूटी सांसों की तार जोड़ते हैं। घुटन-सी है चुभन-सी है अक्सर, ज़िंदगी के रास्तों पर.. बैठें कहीं वीराने में, चंद सांसें उधार मांगते […]