बैचेन निगाहें तुम्हें ढूंढ रही है, कब आओगे कान्हा ! ये पूछ रही है चढ़ ऊँची अटारी, राह निहारी तुम्हारी आ गया बसंत.. अब बारी है तुम्हारी, मिन्नतें कर-कर मैं तो हारी तुमसे, शरण ले लो अपनी बांके बिहारी मैं तो जनम-जनम की प्यासी दासी तुम्हारी, आ गया बसंत भी […]