‘चौराहे पर लुटता चीर प्यादे से पिट गया वजीर, चलूँ आखिरी चाल कि बाजी छोड़ विरक्ति रचाँऊ मैं, राह कौन-सी जाँऊ मैं ?’ ‘धर्मयुग’ में प्रकाशित आपका आत्म चिंतन मंथन,यथार्थ से साक्षात्कार, स्वीकारोक्ति मेरे हृदय में आज भी जीवित है, आपके प्रति मेरे सम्मान की सूचक है। आत्म चिंतन के […]