इनसान संजोता रहता है संकुचित दृष्टिकोण से नित नए सपने प्रदूषित मानसिकता से उपजे सपने स्वार्थी मन में भावनाओं का ज्वार घटता-बढ़ता रहता है व्याप्त है अशांति ही अशांति और जीवन भटक रहा है मृग तृष्णा की तरह। #यशपाल निर्मल परिचय:श्री यशपाल का साहित्यिक उपनाम- यशपाल निर्मल है। आपकी जन्मतिथि-१५ अप्रैल […]