विद्या का मंदिर खूनी जल्लादों का बन घर बैठा, पता नहीं,कब-कहां कौन है कालसर्प बनकर बैठा। चीत्कार-कोहराम मचा है, हर आँख में नीर है, प्रिय मासूम प्रद्युमन का क्यों लहूलुहान शरीर है। मां की आंखें रो-रोकर पथराईं है, बार-बार बाबू बेटा चिल्लाईं है। पापा की आँखों में अंधियारा छाया, बदहवास […]