मैं जल-जल के हूं हारा, कितनी बार जलाओगे.. मन में जो रावण बैठा है, कब उसे भगाओगे। हर बार जलाया जाता हूं, कैसा अभिशाप मिला मुझको.. मर के भी जिंदा रहता हूं, कैसा यह पाप सिला मुझको। सबने ही दोषी पाया है, मैंने सीता का हरण किया.. नेह की भिक्षा […]
कुछ हैं मेरे सपने, कुछ सच्चे,कुछ कच्चे.. कुछ खट्टे,कुछ मीठे, कुछ सिमटे,कुछ बिखरे। कुछ अनमने,कुछ अनकहे, कुछ दिखलाते,कुछ धुंधलाते.. कुछ कराहना,कुछ मुस्कुराते, कुछ आते,कुछ जाते। समेटना चाहूँ,तो मुमकिन नहीं, सपनों ने ही बिखेरा है मुझको.. आस और आस,न रहा कोई पास, रुक-रुक के आते हैं। बवंडर-सा मचा जाते हैं, कभी […]