अपनों से क्यों रुठी हो, अब मान भी जाओ गौरैया.. नन्हें-मुन्ने तुम्हें बुलाते, मेरे आँगन आओ गौरैया। दादी कहती रोज कहानी, जिसमें होती गौरैया.. दादू रखते दाना-पानी, बाग-बगीचे और मुंडेरे। छज्जे ऊपर डब्बा टांगा, पानी का सकोरा बाँधा.. चावल के दाने बिखराए, रहने आजा गौरैया। अपनों से क्यों रुठी हो, […]