जैसे ही विधानसभा चुनाव की तारीख नजदीक आती जा रही है, मध्यप्रदेश के मुखिया के तैवर वैसे-वैसे अकड़ और दंभ से भरते जा रहे है |
मुखिया के हाल बदले से है, या तो हार का डर सता रहा है या फिर शिवराज भी समझ रहे है कि दुल्हन की विदाई तय है| राजधानी का हाल भी कुछ ऐसा ही हो रहा है, एक तरफ बढ़ रही गर्मी शहर के तापमान की ठंडक तो खत्म कर चुकी है वैसे ही राजभवन से लेकर मुख्यमंत्री आवास तक और श्यामला से लेकर सचिवालय तक गर्मी का प्रकोप छाया है, इस गर्मी का कारण चुनाव में भाजपा पर मंडरा रहें संकट के बादल ही है|
मध्यप्रदेश सरकार के काम भी इतने प्रभावी नहीं रहे जो मतदाताओं को लुभा सकें… व्यापम, वनरक्षक, डम्पर घोटाले से लेकर किसानों की आत्महत्याएँ, किसानों का आन्दोलन, मंदसौर काण्ड, सूबे के विधायको के बड़बोले बोल, अन्नदाताओं को अपमानित करना, गरीब, मजदुर, दलित और शोषित वर्ग को दरकिनार कर प्रभुत्वसंपन्नो की सरकार कहलाना, बेटियों का राज्य में सबसे असुरक्षित रहना, आए दिन बेलगाम अफसरशाही का होना, जनमानस के बीच से विकास नाम के मिठ्ठु का गायब होना, कृषि की नई तकनिकी सिखाने वाली विदेश यात्राओं में फर्जी किसानों को भेजना, और इसके अतिरिक्त भी हुए कई घोटालों के बावजूद भी सरकार की और से राहत तो नहीं बल्कि मुख्यमंत्री के तेज तर्राट तेवर से राजधानी की बौखलाहट साफ तौर पर चेहरे साफ तौर पर दिखाई दे रहीं है|
रसुखदारों के कामों को करवाने के लिए पूरी अफसरशाही रास्ते पर बैठी हैं, पर गरीब केवल दफ्तरों के चक्कर लगा-लगा कर ही नीला हो रहा है|
बीते शुक्रवार राजधानी में 400 किमी पैदल चलकर धार जिले की सरदारपुर के किसान, पत्रकार, मजदुर और छात्र पहुँचे, यादगार ए शाहजानी पार्क में धरने पर बैठे, जिसकी सूचना भी मुख्यमंत्री को दी गई, उन्होंने इतने दंभ भरे लहजे में किसानों से मिलना नहीं चाहा जैसे रामायण रावण नें राम के दुत सो दंभ दिखाया था|
खैर, किसान आन्दोलन भी समीप ही आ रहा हैं…
चुकी कांग्रेस पूरे मनोयोग से, पूर्ण ताकत से चुनाव नहीं लड़ पाती है, न कोई कद्दावर कद सामने आता है, वर्ना मामा के सत्ता में लौटने के ख्वाब ही जीवन से दफा हो जाए| परन्तु कांग्रेस भी न जाने क्यों वॉक ओवर देने का चलन बना चुकी है|
बाबाओं को, उनके पट्ठो को, जमीन के जादुगर कांग्रेसीयों को और धर्म की आड़ में वासना के शातिरों को तो मामा राज्यमंत्री दर्जा दे चुका है, क्योंकि वो डरा हुआ तो है पर बीते सप्ताह अमित शाह के प्रदेश दौरे के बाद शायद विदाई को लेकर आश्वस्त भी है कि भाजपा आए या न आए पर मामा का लौटना संभव नहीं है… इसी के चलते मामा भी अब कंस से ज्यादा हानिकारक बनने पर आतुर भी है|
नर्मदा यात्रा के घोटालों पर पर्दा डालने में असमर्थ, शराब बंदी में असफल, अपराध नियंत्रण में असक्षम, भ्रष्टाचार और व्याभिचार पर नकेल लगाने में फिसड्डी होने के बाद जो डर मुख्यमंत्री रहते हुए शिवराज के चेहरे पर दिख रहा है वो निश्चित तौर पर उन्हें भाजपा के शिवराज के नेतृत्व में चुनाव लड़कर बाद में डब्बा गोल होने के संकेत का पूर्वानुमान होना ही माना जाएगा|
मध्यप्रदेश की राजनीति का ये स्याह चेहरा भी विगत 15 से 20 साल में ज्यादा स्पष्ट तौर पर सामने आया है, जब उमा के नेतृत्व से चुनाव जीता फिर डब्बा गोल कर बाबूलाल गौर को काबिज किया, फिर शिव का नंबर आया, अब वही हाल शिवराज का भी होने की पूरी संभावनाएं है |
खैर, हो भी क्यों न, जब आप ही बबूल के बीज बो रहे हो तो स्वाभाविक तौर पर आम तो उगने से रहें | आपने जो गड्डे दूसरो के लिए खोदे है, वो कभी न कभी रंग तो आपके लिए भी दिखाएंगे ही|
वैसे भी शिवराज और पाला बदलना दोनों साथ चलते है, कभी पटवा जी की आड़ लेकर तो कभी कैलाश जोशी जी, कभी आडवानी की गोद में तो कभी अमित शाह को मनाने में…मतलब साफ है, स्वार्थ जबतक है तब तक शिवराज आपके है वर्ना आपकी लाश पर भी पैर रखकर जाना पडे़ तो शिवराज को कोई गुरेज न होगा| अब सोचना मतदाताओं को होगा कि क्या ऐसे एहसान फरामोश को जिताना सही होगा, क्योंकि कुछ दिनों पूर्व शिव ने एक बयान में कहा कि वे कभी भी जा सकते है, हो सकता है शीर्ष नेतृत्व ने कुछ संकेत दिए हो जिससे भी शिवराज अनायास भय से आक्रान्तित हो जिसके कारण भी वो प्रदेश में असहजता जाहिर कर रहें हो | अंतत: शिव की विदाई के साथ भाजपा की विदाई के संकेत भी हैं| परिणाम चाहे जो भी हो पर अब शिव के सर पर घमंड चढ़ चुका है जो निश्चित तौर पर भाजपा के बुरे दिन लाएगा|