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इस जगत में
कौन किसकी
प्रियतमा है,
कौन प्रीतम।
प्रीति द्युति
चमको जहां पल,
वहीं फूटा
चिर विरहतम।
देख जिसकी ओर बस,
प्रीत वह ही मुस्कराता
मौन होकर बात मन की
सांध्य घन से दृग झुकाता,
कांप निश्छल
लाज प्रतिमा
अचिर उपजती प्रणय भ्रम॥
प्राण का दीपक जलाकर,
थाल में नैवैद्य जीवन
मुग्ध जब झुकता पुजारी
मुदित करने को समर्थन,
तृप्ति देता देवता क्या
तृष्णा का वरदान दुर्दम॥
यह नियति का व्यंग्य कैसा,
प्रीति में परतंत्र सब जन
चोर-सी भयभीत शंकित
वासना पर कुछ न अंकुश,
चल रहा ओर निर्भय
तृप्ति के पल-पल उपक्रम॥
जीतते ही रहे वंचक
मन स्वयं हर बार हारा,
चाहे फिर भी प्रणय की
घूमता असहाय मारा,
प्यास जलती मांगती जल
सब सरो में कीच कर्दम॥
नेह जब होवे तिरस्कृत,
मन रुदन कब तक करेगा
भटकता कब तक विजन में,
शून्य में आहें भरेगा
नेह की परवाह किसको,
स्वार्थरत संसार निर्मम॥
#सुशीला जोशी
परिचय: नगरीय पब्लिक स्कूल में प्रशासनिक नौकरी करने वाली सुशीला जोशी का जन्म १९४१ में हुआ है। हिन्दी-अंग्रेजी में एमए के साथ ही आपने बीएड भी किया है। आप संगीत प्रभाकर (गायन, तबला, सहित सितार व कथक( प्रयाग संगीत समिति-इलाहाबाद) में भी निपुण हैं। लेखन में आप सभी विधाओं में बचपन से आज तक सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों का प्रकाशन सहित अप्रकाशित साहित्य में १५ पांडुलिपियां तैयार हैं। अन्य पुरस्कारों के साथ आपको उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य संस्थान द्वारा ‘अज्ञेय’ पुरस्कार दिया गया है। आकाशवाणी (दिल्ली)से ध्वन्यात्मक नाटकों में ध्वनि प्रसारण और १९६९ तथा २०१० में नाटक में अभिनय,सितार व कथक की मंच प्रस्तुति दी है। अंग्रेजी स्कूलों में शिक्षण और प्राचार्या भी रही हैं। आप मुज़फ्फरनगर में निवासी हैं|
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Tue Feb 6 , 2018
प्रकृति स्वयं में सौम्य सुशोभित,सुन्दर लगती है। देख समय अनुकूल हमेशा,सोती-जगती है॥ जब मानव की छेड़खानियाँ,हद से बढ़ जाती। जग जननी नैसर्गिक माता,रोती बिलखाती॥ लोभ मोह के वशीभूत हो,जब समता घायल। बिन्दी पाँवों में गिर जाती,माथे पर पायल॥ अट्टहास कर मानव चुनता,जब उल्टी राहें। महामारियाँ हँसकर गहतीं,फैलाकर बांहें॥ चेचक हैजा […]