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थोड़ी-सी गलती मेरी है,और तुम्हारी भी थोड़ी-सी।
कौन मगर गलती करके भी,अपनी गलती को स्वीकारे॥
हमने अपनी मन तृष्णा के, घोड़े जीवन भर दौड़ाए।
मैं भी राम नहीं बन पाया, तुम भी खुदा नहीं बन पाए॥
हम दोनों ही भौतिकता की, चाहत की चाहत से हारे।
कौन मगर गलती करके भी, अपनी गलती को स्वीकारे…॥
प्रेम और विश्वास यही दो, जीवन के ताने बाने हैं।
लेकिन यह सच भी तो सच है, हम इनसे ही अनजाने हैं॥
हमने सत्य सदा ठुकराया, आडम्बर को हाथ पसारे।
कौन मगर गलती करके भी, अपनी गलती को स्वीकारे…॥
घूम रहे हैं हम दोनों ही, ओढ़े कई मुखौटे मुख पर।
कब सच्चे आँसू टपकाए, हमने कमजोरों के दुख पर॥
निज इच्छा पूरी करने को, जाने कितने हक मारे।
कौन मगर गलती करके भी,अपनी गलती को स्वीकारे…॥
सत्य यही है मानव होकर, मानव-सा व्यवहार किया कब।
हमने केवल ढोंग किया है, मानवता से प्यार किया कब॥
अपना स्वार्थ पूर्ण करने को, धर्म-जाति के लिए सहारे।
कौन मगर गलती करके भी, अपनी गलती को स्वीकारे…॥
#सतीश बंसल
परिचय : सतीश बंसल देहरादून (उत्तराखंड) से हैं। आपकी जन्म तिथि २ सितम्बर १९६८ है।प्रकाशित पुस्तकों में ‘गुनगुनाने लगीं खामोशियाँ (कविता संग्रह)’,’कवि नहीं हूँ मैं(क.सं.)’,’चलो गुनगुनाएं (गीत संग्रह)’ तथा ‘संस्कार के दीप( दोहा संग्रह)’आदि हैं। विभिन्न विधाओं में ७ पुस्तकें प्रकाशन प्रक्रिया में हैं। आपको साहित्य सागर सम्मान २०१६ सहारनपुर तथा रचनाकार सम्मान २०१५ आदि मिले हैं। देहरादून के पंडितवाडी में रहने वाले श्री बंसल की शिक्षा स्नातक है। निजी संस्थान में आप प्रबंधक के रुप में कार्यरत हैं।
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