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कुछ आशाओं,कुछ सपनों को संजोते ये खिलखिलाते बच्चे,
कभी जानी-पहचानी तो कभी अनजानी राहों पर उन्मुक्त हो,
दौड़ते ये खिलखिलाते बच्चे।
न ईर्ष्या,न द्वेष इन्हें किसी से,
प्यार से दिल जीतते ये खिलखिलाते बच्चे।
पर न जाने किस बोझ तले अंधेरी गलियों में गुम होते,
चमचमाते खिलौनों से खेलते,अपने प्यारे से खिलौनों से दूर बहुत दूर हो गए वो
खिलखिलाते बच्चे।
ये कौन-सी नकली अवसाद की,डरावनी दुनिया का दरवाजा दिख दिया उन्हें कि
अपनों से,अपने रिश्तों से
अपने सपनों अपनी मुस्कान से,
दूर हो गए..न जाने कहाँ गए
वो खिलखिलाते बच्चे!॥
#डॉ. दीपा मनीष व्यास
परिचय : सहायक प्राध्यापक डॉ. दीपा मनीष व्यास लेखन में भी सक्रिय हैं। आपने एमए के बाद पीएचडी (हिन्दी साहित्य)भी की है। जन्म इंदौर में ही हुआ है। इन्दौर(म.प्र.)के प्रसिद्ध दैनिक समाचार-पत्र में कहानियाँ और कविता प्रकाशित हुई हैं।आप साहित्य संस्था में अध्यक्ष पद पर हैं एवं कई सामाजिक पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित होती हैं।
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