हिंदी को प्रचलित तौर पर माथे की बिंदी कहा जाता है। जिस तरह सही बिंदी लगाने मात्र से नारी का व्यक्तित्व प्रभावशाली हो जाता है,ठीक उसी तरह हिंदी भाषा के शुद्ध प्रयोग से साहित्य और हमारे लेखन की महत्ता भी बढ़ जाती है,लेकिन आज देखने में यह आ रहा है कि इसके मूल स्वरूप और बौद्धिक स्तर में निरन्तर गिरावट आ रही है। यह चिन्ताजनक होने के साथ ही अपेक्षित सुधार की आवश्यकता भी बतलाता है। इस पर चर्चा हो,इससे पहले हिंदी के महत्व को जानना भी जरूरी है।
हिंदी हमारी मातृभाषा तो है ही,यह विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भाषा भी है,जिसे विश्व के अन्य देशों में भी अपनाया जाता है। यही कारण है कि-राजभाषा, सम्पर्क भाषा और जनभाषा बनने के बाद अब हमारी हिंदी विश्वभाषा बनने की ओर अग्रसर है।
हिंदी के ज्यादातर शब्द-संस्कृत,अरबी और फ़ारसी भाषा से लिए गए हैं,इसीलिए यह हमारी राष्ट्रीय चेतना की संवाहक भी है। हिंदी अपने-आप में एक समर्थ भाषा है। प्राचीन,समृद्ध तथा प्रकृति से तादात्म्य बिठाने वाली हमारी हिंदी १४ सितंबर १९४९ को एक संवैधानिक निर्णय के बाद राजभाषा के रूप में प्रचारित, प्रसारित की जाने लगी तथा राष्ट्रभाषा प्रचार समिति(वर्धा) के आग्रह पर सन १९५३ से सम्पूर्ण भारत में इसे १४ सितंबर को `हिंदी दिवस` के रूप में मनाया जाने लगा। आगे चलकर इसे `विश्व हिंदी दिवस` के रूप में स्वीकार किया गया,जो बड़े गौरव की बात तो है ही हिंदी के महत्व और उसकी उपयोगिता को भी प्रतिपादित करती है। इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी हिंदी के प्रति जनमानस में रुझान और जागरूकता बढ़ी है।
विश्व में हिंदी बोलने वालों की संख्या,अंग्रेजी भाषियों की तुलना में कहीं अधिक है। यह अधिकांश मध्यम वर्ग की लोकप्रिय और प्रयुक्त भाषा होने के कारण बहुराष्ट्रीय संस्थानों ने भी इसे अपनाया और अपने उत्पादनों के प्रचार-प्रसार के लिए भी इसे ही चुना। यही नहीं,आज टी.वी. चैनलों एवं मनोरंजन की दुनिया में हिंदी सबसे अधिक लाभ की भाषा है। एक अनुमान के मुताबिक कुल विज्ञापनों की ७५ प्रतिशत भागीदारी भी हिंदी भाषा से ही है।
आंकड़े बताते हैं कि,पिछले दशकों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी का विकास बहुत तेजी से हुआ है,जिसके प्रभाव स्वरूप-वेब,विज्ञापन,संगीत,सिने
सबसे ज्यादा प्रसन्नता की बात हमारे लिए यह है कि-विदेशों से सैकड़ों पत्र-पत्रिकाएं भी हिंदी भाषा से नियमित रूप से निकल रहे हैं। इसका एक प्रमुख कारण मुझे यह भी लगता है कि-हिंदी भाषा और इसमें निहित भारत की सांस्कृतिक धरोहर इतनी सुदृढ़ और समृद्ध है कि इस ओर अधिक प्रयत्न न किए जाने के बावजूद भी हिंदी के विकास की गति बहुत तेज है।
कोई भी क्षेत्र हो-भारतीय संगीत,ध्यान,योग, विज्ञान,आयुर्वेद,हस्तकला,भोजन और भारतीय परिधानों की बढ़ती मांग तथा आकर्षण के कारण इनके केन्द्र पूरे विश्व में अपनी धाक जमाते नजर आते हैं। इस कारण आज हिंदी ने अन्य भाषाओं को पीछे छोड़ा है और अपना वर्चस्व बनाया है। करोड़ों हिंदीभाषी आज संगणक और चलायमान पर हिंदी भाषा का प्रयोग करते हैं,जो एक बड़ी उपलब्धि है।
बावजूद इसके आज हिंदी भाषा अपना मूल स्वरूप खोते नजर आ रही है,जिससे उसके बौद्धिक स्तर में आ रही निरन्तर गिरावट चिंता का विषय है। इसका एक बड़ा कारण अशुद्ध प्रयोग और युवा पीढ़ी तथा हमारे द्वारा भी अपनी सुविधा के लिए गढ़े जाने वाले वे शब्द हैं जो एक नई अधकचरी भाषा को जनम दे रहे हैं। यही सर्वाधिक चिंता का विषय है,जिससे बचना बहुत जरूरी है।
फिर भी,मेरी नजर में हिंदी का भविष्य पूरी तरह से उज्ज्वल है। यह जन-जन के मन की भाषा है। इसे औऱ अधिक बेहतर तथा मूल रूप में प्रयुक्त किया जाना ही हम सबकी जवाबदारी है। जिस दिन से हम हिन्दी के प्रति अपने दायित्व को गम्भीरता से लेने लगेंगे,तो फिर उसे कोई भी राष्ट्रभाषा बनने से भी नहीं रोक सकता है।
#देवेन्द्र सोनी